लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय ११-१२

दक्ष की तपस्या और देवी शिवा का उन्हें वरदान देना

नारदजी ने पूछा- पूज्य पिताजी! दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रत का पालन करनेवाले दक्ष ने तपस्या करके देवी से कौन-सा वर प्राप्त किया तथा वे देवी किस प्रकार दक्ष की कन्या हुईं?

ब्रह्माजी ने कहा- नारद! तुम धन्य हो! इन सभी मुनियों के साथ भक्तिपूर्वक इस प्रसंग को सुनो। मेरी आज्ञा पाकर उत्तम बुद्धिवाले महाप्रजापति दक्ष ने क्षीरसागर के उत्तर तट पर स्थित हो देवी जगदम्बिका को पुत्री के रूप में प्राप्त करने की इच्छा तथा उनके प्रत्यक्ष दर्शन की कामना लिये उन्हें हृदय-मन्दिर में विराजमान करके तपस्या प्रारम्भ की। दक्ष ने मन को संयम में रखकर दृढ़तापूर्वक कठोर व्रत का पालन करते हुए शौच-संतोषादि नियमों से युक्त हो तीन हजार दिव्य वर्षों तक तप किया। वे कभी जल पीकर रहते, कभी हवा पीते और कभी सर्वथा उपवास करते थे। भोजन के नाम पर कभी सूखे पत्ते चबा लेते थे।

मुनिश्रेष्ठ नारद! तदनन्तर यम-नियमादि से युक्त हो जगदम्बा की पूजा में लगे हुए दक्ष को देवी शिवा ने प्रत्यक्ष दर्शन दिया। जगन्मयी जगदम्बा का प्रत्यक्ष दर्शन पाकर प्रजापति दक्ष ने अपने-आपको कृतकृत्य माना। वे कालिका देवी सिंह पर आरूढ़ थीं। उनकी अंग कान्ति श्याम थी। मुख बड़ा ही मनोहर था। वे चार भुजाओं से युक्त थीं और हाथों में वरद, अभय, नीलकमल और खड्ग धारण किये हुए थीं। उनकी मूर्ति बड़ी मनोहारिणी थी। नेत्र कुछ-कुछ लाल थे। खुले हुए केश बड़े सुन्दर दिखायी देते थे। उत्तम प्रभा से प्रकाशित होनेवाली उन जगदम्बा को भलीभांति प्रणाम करके दक्ष विचित्र वचनावलियों द्वारा उनकी स्तुति करने लगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book