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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय १४

दक्ष की साठ कन्याओं का विवाह, दक्ष और वीरिणी के यहाँ देवी शिवा का अवतार, दक्ष द्वारा उनकी स्तुति तथा सती के सद्गुणों एवं चेष्टाओं से माता-पिता की प्रसन्नता

ब्रह्माजी कहते हैं- देवर्षे! इसी समय दक्ष के इस बर्ताव को जानकर मैं भी वहाँ आ पहुँचा और पूर्ववत् उन्हें शान्त करने के लिये सान्त्वना देने लगा। तुम्हारी प्रसन्नता को बढ़ाते हुए मैंने दक्ष के साथ तुम्हारा सुन्दर स्नेहपूर्ण सम्बन्ध स्थापित कराया। तुम मेरे पुत्र हो, मुनियों में श्रेष्ठ और सम्पूर्ण देवताओं के प्रिय हो। अत: बड़े प्रेम से तुम्हंो आश्वासन देकर मैं फिर अपने स्थान पर आ गया। तदनन्तर प्रजापति दक्ष ने मेरी अनुनय के अनुसार अपनी पत्नी के गर्भ से साठ सुन्दरी कन्याओं को जन्म दिया और आलस्यरहित हो धर्म आदि के साथ उन सबका विवाह कर दिया। मुनीश्वर! मैं उसी प्रसंग को बड़े प्रेम से कह रहा हूँ, तुम सुनो। मुने! दक्ष ने अपनी दस कन्याएँ विधिपूर्वक धर्म को ब्याह दीं, तेरह कन्याएँ कश्यप मुनि को दे दीं और सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ कर दिया। भूत (या बहुपुत्र), अंगिरा तथा कृशाश्व को उन्होंने दो-दो कन्याएँ दीं और शेष चार कन्याओं का विवाह तार्क्ष्य (या अरिष्टनेमि) के साथ कर दिया। इन सबकी संतान-परम्पराओं से तीनों लोक भरे पड़े हैं। अत: विस्तार-भय से उनका वर्णन नहीं किया जाता। कुछ लोग शिवा या सती को दक्ष की ज्येष्ठ पुत्री बताते हैं। दूसरे लोग उन्हें मझली पुत्री कहते हैं तथा कुछ अन्य लोग सबसे छोटी पुत्री मानते हैं। कल्पभेद से ये तीनों मत ठीक हैं। पुत्र और पुत्रियों की उत्पत्ति के पश्चात् पत्नीसहित प्रजापति दक्ष ने बड़े प्रेम से मन-ही-मन जगदम्बिका का ध्यान किया। साथ ही गद्गदवाणी से प्रेमपूर्वक उनकी स्तुति भी की। बारंबार अंजलि बाँध नमस्कार करके वे विनीतभाव से देवी को मस्तक झुकाते थे। इससे देवी शिवा संतुष्ट हुईं और उन्होंने अपने प्रण की पूर्ति के लिये मन-ही-मन यह विचार किया कि अब मैं वीरिणी के गर्भसे अवतार लूँ। ऐसा विचार कर वे जगदम्बा दक्ष के हृदय में निवास करने लगीं। मुनिश्रेष्ठ! उस समय दक्ष की बड़ी शोभा होने लगी। फिर उत्तम मुहूर्त देखकर दक्ष ने अपनी पत्नी में प्रसन्नतापूर्वक गर्भाधान किया। तब दयालु शिवा दक्ष-पत्नी के चित्त में निवास करने लगीं। उनमें गर्भधारण के सभी चिह्न प्रकट हो गये। तात! उस अवस्था में वीरिणी की शोभा बढ़ गयी और उसके चित्त में अधिक हर्ष छा गया। भगवती शिवा के निवास के प्रभाव से वीरिणी महामंगलरूपिणी हो गयी। दक्ष ने अपने कुल-सम्प्रदाय, वेदज्ञान और हार्दिक उत्साह के अनुसार प्रसन्नतापूर्वक पुंसवन आदि संस्कार सम्बन्धी श्रेष्ठ क्रियाएँ सम्पन्न कीं। उन कर्मों के अनुष्ठान के समय महान् उत्सव हुआ। प्रजापति ने ब्राह्मणों को उनकी इच्छा के अनुसार धन दिया।

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