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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

देवी बोलीं- पहले तुम्हें सौ बलवान् पुत्र प्राप्त होंगे। उनमें भी एक सबसे अधिक बलवान् और प्रधान होगा, जो सबसे पहले उत्पन्न होगा। तुम्हारी भक्ति से संतुष्ट हो मैं स्वयं तुम्हारे यहाँ पुत्री के रूप में अवतीर्ण होऊँगी और समस्त देवताओं से सेवित हो उनका कार्य सिद्ध करूँगी। ऐसा कहकर जगद्धात्री परमेश्वरी कालिका शिवा मेना के देखते-देखते वहीं अदृश्य हो गयीं। तात! महेश्वरी से अभीष्ट वर पाकर मेना को भी अपार हर्ष हुआ। उनका तपस्याजनित सारा क्लेश नष्ट हो गया। मुने! फिर कालक्रम से मेना के गर्भ रहा और वह प्रतिदिन बढ़ने लगा। समयानुसार उसने एक उत्तम पुत्र को उत्पन्न किया, जिसका नाम मैनाक था। उसने समुद्र के साथ उत्तम मैत्री बाँधी। वह अद्भुत पर्वत नागवधुओं के उपभोग का स्थल बना हुआ है। उसके समस्त अंग श्रेष्ठ हैं। हिमालय के सौ पुत्रों में वह सबसे श्रेष्ठ और महान् बल-पराक्रम से सम्पन्न है। अपने से या अपने बाद प्रकट हुए समस्त पर्वतों में एकमात्र मैनाक ही पर्वतराज के पदपर प्रतिष्ठित है।

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