ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
मेरी यह बात सुनकर भगवान् मधुसूदन हँस पड़े और मुझ लोकस्रष्टा ब्रह्मा का हर्ष बढ़ाते हुए मुझसे शीघ्र ही यों बोले- ''विधातः! तुम मेरा वचन सुनो। यह तुम्हारे भ्रम का निवारण करनेवाला है। मेरा वचन ही वेद-शास्त्र आदि का वास्तविक सिद्धान्त है। शिव ही सबके कर्ता-भर्ता (पालक) और हर्ता (संहारक) हैं। वे ही परात्पर हैं। परब्रह्म, परेश, निर्गुण, नित्य, अनिर्देश्य, निर्विकार अद्वितीय, अछूत, अनन्त, सबका अन्त करनेवाले, स्वामी और सर्वव्यापी परमात्मा एवं परमेश्वर हैं। सृष्टि, पालन और संहार के कर्ता, तीनों गुणों को आश्रय देनेवाले, व्यापक, ब्रह्मा, विष्णु और महेश नाम से प्रसिद्ध, रजोगुण, सत्त्वगुण तथा तमोगुण से परे, माया से ही भेदयुक्त प्रतीत होनेवाले, निरीह मायारहित, माया के स्वामी या प्रेरक, चतुर, सगुण, स्वतन्त्र, आत्मानन्दस्वरूप, निर्विकल्प, आत्माराम, निर्द्वन्द्व, भक्तपरवश, सुन्दर विग्रह से सुशोभित योगी, नित्य योगपरायण, योग-मार्गदर्शक, गर्वहारी, लोकेश्वर और सदा दीनवत्सल हैं। तुम उन्हीं की शरण में जाओ। सर्वात्मना शम्भु का भजन करो। इससे संतुष्ट होकर वे तुम्हारा कल्याण करेगे। ब्रह्मन्! यदि तुम्हारे मन में यह विचार हो कि शंकर पत्नी का पाणिग्रहण करें तो शिवा को प्रसन्न करने के उद्देश्य से शिव का स्मरण करते हुए उत्तम तपस्या करो। अपने उस मनोरथ को हृदय में रखते हुए देवी शिवा का ध्यान करो। वे देवेश्वरी यदि प्रसन्न हो जायें तो सारा कार्य सिद्ध कर देंगी। यदि शिवा सगुणरूप से अवतार ग्रहण करके लोक में किसी की पुत्री हो मानवशरीर ग्रहण करें तो वे निश्चय ही महादेवजी की पत्नी हो सकती हैं। ब्रह्मन्! तुम दक्ष को आज्ञा दो, वे भगवान् शिव के लिये पत्नी का उत्पादन करने के निमित्त स्वत: भक्तिभाव से प्रयत्नपूर्वक तपस्या करें। तात! शिवा और शिव दोनों को भक्त के अधीन जानना चाहिये। वे निर्गुण परब्रह्मस्वरूप होते हुए भी स्वेच्छा से सगुण हो जाते हैं।
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