गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
भगवान् शिव के द्विजेश्वरावतार की कथा, राजा भद्रायु तथा रानी कीर्तिमालिनी की धार्मिक दृढ़ता की परीक्षा
तदनन्तर वैश्यनाथ अवतार का वर्णन करके नन्दीश्वर ने द्विजेश्वरावतार का प्रसंग चलाया। वे बोले- तात! पहले जिन नृपश्रेष्ठ भद्रायु का परिचय दिया गया था और जिन पर भगवान् शिव ने ऋषभरूप से अनुग्रह किया था, उन्हीं नरेश के धर्म की परीक्षा लेने के लिये वे भगवान् फिर द्विजेश्वररूप से प्रकट हुए थे। ऋषभ के प्रभाव से रणभूमि में शत्रुओं पर विजय पाकर शक्तिशाली राजकुमार भद्रायु जब राज्य-सिंहासन पर आरूढ़ हुए, तब राजा चन्द्रांगद तथा रानी सीमन्तिनी की बेटी सती-साध्वी कीर्तिमालिनी के साथ उनका विवाह हुआ। किसी समय राजा भद्रायु ने अपनी धर्मपत्नी साथ वसन्त-ऋतु में वन-विहार करने के लिए एक गहन वन में प्रवेश किया। उनकी पत्नी शरणागतजनों का पालन करनेवाली थी राजा का भी ऐसा ही नियम था। राजदम्पति की धर्म में कितनी दृढ़ता है, इसकी परीक्षा के लिये पार्वतीसहित भगवान् शिव ने एक लीला रची। शिवा और शिव उस वन में ब्राह्मणी और ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुए उन दोनों ने लीलापूर्वक एक मायामय व्याघ्र का निर्माण किया। वे दोनों भय से विह्वल व्याघ्र से थोड़ी ही दूर आगे रोते-चिल्लाते भागने लगे और व्याघ्र उनका पीछा करने लगा। राजा ने उन्हें इस अवस्था में देखा। वे ब्राह्मण-दम्पति भी भय से विह्वल हो महाराज की शरण में गये और इस प्रकार बोले।
ब्राह्मण-दम्पति ने कहा- महाराज! हमारी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये। वह व्याघ्र हम दोनों को खा जानेके लिये आ रहा है समस्त प्राणियों को काल के समान भय देनेवाला यह हिंसक प्राणी हमें अपना आहार बनाये, इसके पूर्व ही आप हम दोनों को बचा लीजिये।
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