लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


अध्याय ४२

शिवजी के द्वादश ज्योतिर्लिंगावतारों का सविस्तर वर्णन

नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! अब तुम सर्वव्यापी भगवान् शंकर के बारह अन्य ज्योतिर्लिंगस्वरूपी अवतारों का वर्णन श्रवण करो, जो अनेक प्रकार के मंगल करनेवाले हैं। (उनके नाम ये हैं-) सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकाल, ओंकार में अमरेश्वर, हिमालय पर केदार, डाकिनी में भीमशंकर, काशी में विश्वनाथ, गौतमी के तटपर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, दारुकवन में नागेश्वर, सेतुबन्ध पर रामेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर। मुने! परमात्मा शम्भु के ये ही वे बारह अवतार हैं। ये दर्शन और स्पर्श करने से मनुष्यों को सब प्रकार का आनन्द प्रदान करते हैं।

मुने! उनमें पहला अवतार सोमनाथ का है। यह चन्द्रमा के दुःख का विनाश करनेवाला है। इनका पूजन करने से क्षय और कुष्ठ आदि रोगों का नाश हो जाता है। यह सोमेश्वर नामक शिवावतार सौराष्ट्र नामक पावन प्रदेश में लिंगरूप से स्थित है। पूर्वकालमें चन्द्रमा ने इनकी पूजा की थी। वहीं सम्पूर्ण पापों का विनाश करनेवाला एक चन्द्रकुण्ड है जिसमें स्नान करने से बुद्धिमान् मनुष्य सम्पूर्ण रोगों से मुक्त हो जाता है। परमात्मा शिव के सोमेश्वर नामक महालिंग का दर्शन करने से मनुष्य पाप से छूट जाता है और उसे भोग और मोक्ष सुलभ हो जाते हैं।

तात! शंकरजी का मल्लिकार्जुन नामक दूसरा अवतार श्रीशैल पर हुआ। वह भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करनेवाला है। मुने! भगवान् शिव परम प्रसन्नतापूर्वक अपने निवासभूत कैलासगिरि से लिंगरूप में श्रीशैल पर पधारे हैं। पुत्र-प्राप्ति के लिये इनकी स्तुति की जाती है। मुने! यह जो दूसरा ज्योतिर्लिंग है वह दर्शन और पूजन करने से महा सुखकारक होता है और अन्त में मुक्ति भी प्रदान कर देता है- इसमें तनिक भी संशय नहीं है। 

तात! शंकरजी का महाकाल नामक तीसरा अवतार उज्जयिनी नगरी में हुआ। वह अपने भक्तों की रक्षा करनेवाला है। एक बार रत्नमाल निवासी दूषण नामक असुर, जो वैदिक धर्म का विनाशक, विप्रद्रोही तथा सब कुछ नष्ट करनेवाला था, उज्जयिनी में जा पहुँचा। तब वेद नामक ब्राह्मण के पुत्र ने शिवजी का ध्यान किया। फिर तो शंकरजी ने तुरंत ही प्रकट होकर हुंकार द्वारा उस असुर को भस्म कर दिया। तत्पश्चात् अपने भक्तों का सर्वथा पालन करनेवाले शिव देवताओं के प्रार्थना करने पर महाकाल नामक ज्योतिर्लिंगस्वरूप से वहीं प्रतिष्ठित हो गये। इन महाकाल नामक लिंग का प्रयत्नपूर्वक दर्शन और पूजन करने से मनुष्य की सारी कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं और अन्त में उसे परम गति प्राप्त होती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book