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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


अध्याय  ४

वाराहकल्प में होनेवाले शिवजी के प्रथम अवतार से लेकर नवम ऋषभ अवतार तक का वर्णन

नन्दीश्वरजी कहते हैं- सर्वज्ञ सनत्कुमारजी। एक बार रुद्र ने हर्षित होकर ब्रह्माजी से शंकर के चरित्र का प्रेमपूर्वक वर्णन किया था। वह चरित्र सदा परम सुखदायक है। (उसे तुम श्रवण करो। वह चरित्र इस प्रकार है।)

शिवजीने कहा था- ब्रह्मन्! वाराहकल्प के सातवें मन्वन्तर में सम्पूर्ण लोकों को प्रकाशित करनेवाले भगवान् कल्पेश्वर, जो तुम्हारे प्रपौत्र है वैवस्वत मनु के पुत्र होंगे। तब उस मन्वन्तर की चतुर्युगियों के किसी द्वापर युग में मैं लोकों पर अनुग्रह करने तथा ब्राह्मणों का हित करने के लिये प्रकट हूँगा। ब्रह्मन्! युगप्रवृत्ति के अनुसार उस प्रथम चतुर्युगी के प्रथम द्वापरयुग में जब प्रभु स्वयं ही व्यास होंगे, तब मैं उस कलियुग के अन्त में ब्राह्मणों के हितार्थ शिवासहित श्वेत नामक महामुनि होकर प्रकट हूँगा। उस समय हिमालय के रमणीय शिखर छागल नामक पर्वतश्रेष्ठ पर मेरे शिखाधारी चार शिष्य उत्पन्न होंगे। उनके नाम होंगे-श्वेत, श्वेतशिख, श्वेताश्व और श्वेतलोहित। वे चारों ध्यानयोग के आश्रय से मेरे नगर में जायँगे। वहाँ वे मुझ अविनाशी को तत्त्वत: जानकर मेरे भक्त हो जायँगे तथा जन्म, जरा और मृत्यु से रहित होकर परब्रह्म की समाधि में लीन रहेंगे। वत्स पितामह! उस समय मनुष्य ध्यान के अतिरिक्त दान, धर्म आदि कर्महेतुक साधनों द्वारा मेरा दर्शन नहीं पा सकेंगे।

दूसरे द्वापर में प्रजापति सत्य व्यास होंगे। उस समय मैं कलियुग में सुतार नाम से उत्पन्न होऊँगा। वहाँ भी मेरे दुन्दुभि, शतरूप, हृषीक तथा केतुमान् नामक चार वेदवादी द्विज शिष्य होंगे। वे चारों ध्यानयोग के बल से मेरे नगर को जायँगे और मुझ अविनाशी को तत्त्वत: जानकर मुक्त हो जायँगे।

तीसरे द्वापर में जब भार्गव नामक व्यास होंगे, तब मैं भी नगर के निकट ही दमन नाम से प्रकट होऊँगा। उस समय भी मेरे विशोक, विशेष, विपाप और पापनाशन नामक चार पुत्र होंगे। चतुरानन! उस अवतार में मैं शिष्यों को साथ ले व्यास की सहायता करूँगा और उस कलियुग में निवृत्तिमार्ग को सुदृढ़ बनाऊँगा।

चौथे द्वापर में जब अंगिरा व्यास कहे जायँगे, उस समय मैं सुहोत्र नाम से अवतार लूँगा। उस समय भी मेरे चार योगसाधक महात्मा पुत्र होंगे। ब्रह्मन्! उनके नाम होंगे- सुमुख, दुर्मुख, दुर्दम और दुरतिक्रम। उस अवसर पर भी इन शिष्यों के साथ मैं व्यास की सहायता में लगा रहूँगा।

पाँचवें द्वापर में सविता व्यास नाम से कहे जायँगे। तब मैं कंक नामक महातपस्वी योगी होऊँगा। ब्रह्मन्! वहाँ भी मेरे चार योगसाधक महात्मा पुत्र होंगे। उनके नाम बतलाता हूँ, सुनो- सनक, सनातन, प्रभावशाली सनन्दन और सर्वव्यापक निर्मल तथा अहंकाररहित सनत्कुमार। उस समय भी कंक नामधारी मैं सविता नामक व्यास का सहायक बनूँगा और निवृत्तिमार्ग को बढ़ाऊँगा।

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