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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


अध्याय २८

भगवान् शिव का यतिनाथ एवं हंस नामक अवतार

नन्दीश्वर कहते हैं- मुने! अब मैं परमात्मा शिव के यतिनाथ नामक अवतार का वर्णन करता हूँ। मुनीश्वर! अर्बुदाचल नामक पर्वत के समीप एक भील रहता था, जिसका नाम था आहुक। उसकी पलीको लोग आहुका कहते थे। वह उत्तम व्रत का पालन करनेवाली थी। वे दोनों पति-पत्नी महान् शिवभक्त थे और शिव की आराधना-पूजा में लगे रहते थे। एक दिन वह शिवभक्त भील अपनी पत्नी के लिये आहार की खोज करने के निमित्त जंगल में बहुत दूर चला गया। इसी समय संध्याकाल में भील की परीक्षा लेने के लिये भगवान् शंकर संन्यासी का रूप धारण करके घर आये। इतने में ही उस घर का मालिक भील भी चला आया और उसने बड़े प्रेम से उन यतिराज का पूजन किया। उसके मनोभाव की परीक्षा के लिये उन यतीश्वर ने दीनवाणी में कहा- 'भील! आज रात में यहाँ रहने के लिये मुझे स्थान दे दो। सबेरा होते ही चला जाऊँगा, तुम्हारा सदा कल्याण हो।'

भील बोला- स्वामीजी! आप ठीक कहते है तथापि मेरी बात सुनिये। मेरे घर में स्थान तो बहुत थोड़ा है। फिर उसमें आपका रहना कैसे हो सकता है?

भीलकी  यह बात सुनकर स्वामी जी वहाँ से चले जाने को उद्यत हो गये।

तब भीलनी ने कहा- प्राणनाथ! आप स्वामीजी को स्थान दे दीजिये। घर आये हुए अतिथि को निराश न लौटाइये। अन्यथा हमारे गृहस्थ-धर्म के पालन में बाधा पहुँचेगी। आप स्वामीजी के साथ सुखपूर्वक घर के भीतर रहिये और मैं बड़े-बड़े अस्त्र-शस्त्र लेकर बाहर खड़ी रहूँगी।

पत्नी की यह बात सुनकर भील ने सोचा- स्त्री को घर से बाहर निकालकर मैं भीतर कैसे रह सकता हूँ? संन्यासी जी का अन्यत्र जाना भी मेरे लिये अधर्मकारक ही होगा। ये दोनों ही कार्य एक गृहस्थ के लिये सर्वथा अनुचित हैं। अत: मुझे ही घर के बाहर रहना चाहिये। जो होनहार होगी, वह तो होकर ही रहेगी। ऐसा सोच आग्रह करके उसने स्त्री को और संन्यासीजी को तो सानन्द घर के भीतर रख दिया और स्वयं वह भील अपने आयुध पास रखकर घर से बाहर खड़ा हो गया।

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