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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

ब्राह्मणीने पूछा- भिक्षुदेव! क्या कारण है कि इसके पिता राजा सत्यरथ श्रेष्ठ भोगों के उपभोग के समय बीच में ही शाल्वदेशीय शत्रुओं द्वारा मार डाले गये। किस कारण से इस शिशु की माता को ग्राह ने खा लिया? और यह शिशु जो जन्म से ही अनाथ और बन्धुहीन हो गया, इसका क्या कारण है? मेरा अपना पुत्र भी अत्यन्त दरिद्र एवं भिक्षुक क्यों हुआ तथा मेरे इन दोनों पुत्रों को भविष्य में कैसे सुख प्राप्त होगा?

भिक्षुवर्य शिव ने कहा- इस राजकुमार के पिता विदर्भराज पूर्वजन्म में पाण्ड्य देश के श्रेष्ठ राजा थे। वे सब धर्मों के ज्ञाता थे और सम्पूर्ण पृथ्वी का धर्मपूर्वक पालन करते थे। एक दिन प्रदोषकाल में राजा भगवान् शंकर का पूजन कर रहे थे और बड़ी भक्ति से त्रिलोकीनाथ महादेवजी की आराधना में संलग्न थे। उसी समय नगर में सब ओर बड़ा भारी कोलाहल मचा। उस उत्कट शब्द को सुनकर राजा ने बीच में ही भगवान् शंकर की पूजा छोड़ दी और नगर में क्षोभ फैलने की आशंका से राजभवन से बाहर निकल गये। इसी समय राजा का महाबली मन्त्री शत्रु को पकड़कर उनके समीप ले आया। वह शत्रु पाण्ड्यराज का ही सामन्त था। उसे देखकर राजा ने क्रोधपूर्वक उसका मस्तक कटवा दिया। शिवपूजा छोड़कर नियम को समाप्त किये बिना ही राजा ने रात में भोजन भी कर लिया। इसी प्रकार राजकुमार भी प्रदोषकाल में शिवजी की पूजा किये बिना ही भोजन करके सो गया। वही राजा दूसरे जन्म में विदर्भराज हुआ था। शिवजी की पूजा में विघ्न होने के कारण शत्रुओं ने उसको सुख-भोग के बीच में ही मार डाला। पूर्वजन्म में जो उसका पुत्र था, वही इस जन्म में भी हुआ है। शिवजी की पूजा का उल्लंघन करने के कारण यह दरिद्रता को प्राप्त हुआ है। इसकी माता ने पूर्वजन्म में छल से अपनी सौत को मार डाला था। उस महान् पाप के कारण ही वह इस जन्म में ग्राह के द्वारा मारी गयी। ब्राह्मणी! यह तुम्हारा पुत्र पूर्वजन्म में उत्तम ब्राह्मण था। इसने सारी आयु केवल दान लेने में बितायी है यज्ञ आदि सत्कर्म नहीं किये हैं। इसीलिये यह दरिद्रता को प्राप्त हुआ है। उस दोष का निवारण करने के लिये अब तुम भगवान् शंकर की शरण में जाओ। ये दोनों बालक यज्ञोपवीत-संस्कार के पश्चात् भगवान् शिव की आराधना करें। भगवान् शिव इनका कल्याण करेंगे।

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