गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
प्रिय सनत्कुमारजी! अब
तुम शिवजी के अनुपम अर्धनारीनररूप का वर्णन सुनो। महाप्राज्ञ! वह रूप
ब्रह्मा की कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है। (सृष्टि के आदि में) जब
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा द्वारा रची हुई सारी प्रजाएँ विस्तार को नहीं प्राप्त
हुईं, तब ब्रह्मा उस दुःख से दुःखी हो चिन्ताकुल हो गये। उसी समय यों
आकाशवाणी हुई- 'ब्रह्मन्! अब मैथुनी सृष्टि की रचना करो।' उस व्योमवाणी को
सुनकर ब्रह्मा ने मैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने का विचार किया; परंतु इससे
पहले नारियों का कुल ईशान से प्रकट ही नहीं हुआ था, इसलिये पद्मयोनि
ब्रह्मा मैथुनी सृष्टि रचने में समर्थ न हो सके। तब वे यों विचार कर कि
शम्भु की कृपा के बिना मैथुनी प्रजा उत्पन्न नहीं हो सकती, तप करने को
उद्यत हुए। उस समय ब्रह्मा पराशक्ति शिवा सहित परमेश्वर शिव का
प्रेमपूर्वक हृदय में ध्यान करके घोर तप करने लगे। तदनन्तर तपोऽनुष्ठान
में लगे हुए ब्रह्मा के उस तीव्र तप से थोड़े ही समय में शिवजी प्रसन्न हो
गये। तब वे कष्टहारी शंकर पूर्णसच्चिदानन्द की कामदा मूर्ति में प्रविष्ट
होकर अर्धनारीनर के रूप से ब्रह्मा के निकट प्रकट हो गये! उन देवाधिदेव
शंकर को पराशक्ति शिवा के साथ आया हुआ देख ब्रह्मा ने दण्ड की भांति
भूमिपर लेटकर उन्हें प्रणाम किया और फिर वे हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे। तब
विश्वकर्ता देवाधिदेव महादेव महेश्वर परम प्रसन्न होकर ब्रह्मा से मेघ की
सी गम्भीर वाणी में बोले।
ईश्वर ने कहा- महाभाग
वत्स! मेरे प्यारे पुत्र पितामह! मुझे तुम्हारा सारा मनोरथ पूर्णतया ज्ञात
हो गया है। तुमने जो इस समय प्रजाओं की वृद्धि के लिये घोर तप किया है
तुम्हारे उस तप से मैं प्रसन्न हो गया हूँ और तुम्हें तुम्हारा अभीष्ट
प्रदान करूँगा। यों स्वभाव से ही मधुर तथा परम उदार वचन कहकर शिवजी ने
अपने शरीर के अर्धभाग से शिवादेवी को पृथक् कर दिया। तब शिव से पृथक् होकर
प्रकट हुई उन परमा शक्ति को देखकर ब्रह्मा विनम्रभाव से प्रणाम करके उनसे
प्रार्थना करने लगे।
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