गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
0 |
भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
घुश्मेश्वरावतार शंकरजी का बारहवाँ अवतार है। वह नाना प्रकार की लीलाओं का कर्ता, भक्तवत्सल तथा घुश्मा को आनन्द देनेवाला है। मुने! घुश्मा का प्रिय करने के लिये भगवान् शंकर दक्षिणदिशा में स्थित देवशैल के निकटवर्ती एक सरोवर में प्रकट हुए। मुने! घुश्मा के पुत्र को सुदेह्य ने मार डाला था। (उसे जीवित करने के लिये घुश्मा ने शिवजी की आराधना की।) तब उनकी भक्ति से संतुष्ट होकर भक्तवत्सल शम्भु ने उनके पुत्र को बचा लिया। तदनन्तर कामनाओं के पूरक शम्भु घुश्मा की प्रार्थना से उस तड़ाग में ज्योतिर्लिंगरूप से स्थित हो गये! उस समय उनका नाम घुश्मेश्वर हुआ। जो मनुष्य उस शिवलिंग का भक्ति-पूर्वक दर्शन तथा पूजन करता है? वह इस लोक में सम्पूर्ण सुखों को भोगकर अन्त में मुक्ति-लाभ करता है। सनत्कुमारजी! इस प्रकार मैंने तुमसे इन बारह दिव्य ज्योतिर्लिंगों का वर्णन किया। ये सभी भोग और मोक्ष के प्रदाता हैं। जो मनुष्य ज्योतिर्लिंगों की इस कथा को पढ़ता अथवा सुनता है वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है तथा भोग-मोक्ष को प्राप्त करता है। इस प्रकार मैंने इस शतरुद्रनाम की संहिता का वर्णन कर दिया। यह शिवके सौ अवतारों की उत्तम कीर्ति से सम्पन्न तथा सम्पूर्ण अभीष्ट फलों को देनेवाली है। जो मनुष्य इसे नित्य समाहितचित्त से पड़ता अथवा सुनता है उसकी सारी लालसाएं पूर्ण हो जाती हैं और अन्त में उसे निश्चय ही मुक्ति मिल जाती है।