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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


अध्याय १९-२१

केदारेश्वर तथा भीमशंकर नामक ज्योतिर्लिंगों के आविर्भाव की कथा तथा उनके माहात्म्य का वर्णन

सूतजी कहते हैं- ब्राह्मणो! भगवान् विष्णु के जो नर-नारायण नामक दो अवतार हैं और भारतवर्ष के बदरिकाश्रम तीर्थ में तपस्या करते है उन दोनों ने पार्बिव शिवलिंग बनाकर उसमें स्थित हो पूजा ग्रहण करने के लिये भगवान् शम्भु से प्रार्थना की। शिवजी भक्तों के अधीन होने के कारण प्रतिदिन उनके बनाये हुए पार्थिवलिंग में पूजित होने के लिये आया करते थे। जब उन दोनों के पार्थिव-पूजन करते बहुत दिन बीत गये, तब एक समय परमेश्वर शिव ने प्रसन्न होकर कहा- 'मैं तुम्हारी आराधना से बहुत संतुष्ट हूँ। तुम दोनों मुझसे वर माँगो।' उस समय उनके ऐसा कहने पर नर और नारायण ने लोगों के हित की कामना से कहा- 'देवेश्वर! यदि आप प्रसन्न हैं और यदि मुझे वर देना चाहते हैं तो अपने स्वरूप से पूजा ग्रहण करने के लिये यहीं स्थित हो जाइये।'

उन दोनों बन्धुओं के इस प्रकार अनुरोध करने पर कल्याणकारी महेश्वर हिमालय के उस केदारतीर्थ में स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गये। उन दोनों से पूजित होकर सम्पूर्ण दुःख और भय का नाश करनेवाले शम्भु लोगों का उपकार करने और भक्तों को दर्शन देने के लिये स्वयं केदारेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो वहाँ रहते हैं। वे दर्शन और पूजन करनेवाले भक्तों को सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करते हैं। उसी दिन से लेकर जिसने भी भक्तिभाव से केदारेश्वर का पूजन किया, उसके लिये स्वप्न में भी दुःख दुर्लभ हो गया। जो भगवान् शिव का प्रिय भक्त वहाँ शिवलिंग के निकट शिव के रूप से अंकित वलय (कंकण या कड़ा) चढ़ाता है वह उस वलययुक्त स्वरूप का दर्शन करके समस्त पापों से मुक्त हो जाता है साथ ही जीवन्मुक्त भी हो जाता है। जो बदरीवन की यात्रा करता है उसे भी जीवन्मुक्ति प्राप्त होती है। नर और नारायण के तथा केदारेश्वर शिव के रूप का दर्शन करके मनुष्य मोक्ष का भागी होता है इसमें संशय नहीं है। केदारेश्वर में भक्ति रखनेवाले जो पुरुष वहाँ की यात्रा आरम्भ करके उनके पासतक पहुँचने के पहले मार्ग में ही मर जाते हैं? वे भी मोक्ष पा जाते हैं- इसमें विचार करने की आवश्यकता नहीं है।

केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:।
तेऽपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्या विचारणा।।
(शि. पु. कोटिरुद्रसंहिता १९ । २२)

केदारतीर्थ में पहुँचकर वहाँ प्रेमपूर्वक केदारेश्वर की पूजा करके वहाँ का जल पी लेने के पश्चात् मनुष्य का फिर जन्म नहीं होता। ब्राह्मणो! इस भारतवर्ष में सम्पूर्ण जीवों को भक्तिभाव से भगवान् नर-नारायण की तथा केदारेश्वर शम्भु की पूजा करनी चाहिये।

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