गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
0 |
भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
अध्याय ३५-३६
भगवान् विष्णु द्वारा पठित शिवसहस्रनामस्तोत्र
सूत उवाच
श्रूयतां भो ऋषिश्रेष्ठा येन तुष्टो महेश्वर:।तदहं कथयाम्यद्य शैवं नामसहस्रकम्।।१।।
सूतजी बोले- मुनिवरो! सुनो, जिससे महेश्वर संतुष्ट होते है वह शिवसहस्रनामस्तोत्र आज तुम सबको सुना रहा हूँ।।१।।
विष्णुरुवाच
शिवो हरो मृडो रुद्र: पुष्कर: पुष्पलोचन:।अर्थिगम्य: सदाचार: शर्व: शम्भुर्महेश्वर:।।२।।
भगवान् विष्णु ने कहा -
१ शिव: - कल्याणस्वरूप, २ हर: - भक्तों के पाप-ताप हर लेनेवाले, ३ मृडः - सुखदाता, ४ रुद्र: - दुःख दूर करनेवाले, ५ पुष्कर: - आकाशस्वरूप, ६ पुष्पलोचन: - पुष्प के समान खिले हुए नेत्रवाले, ७ अर्थिगम्य: - प्रार्थियों को प्राप्त होनेवाले, ८ सदाचार: - श्रेष्ठ आचरणवाले, ९ शर्व: - संहारकारी, १० शम्भु: - कल्याणनिकेतन, ११ महेश्वर: - महान् ईश्वर।।२।।
चन्द्रापीडश्चन्द्रमौलिर्विश्वं विश्वम्भरेश्वर:।वेदान्तसारसंदोह: कपाली नीललोहित:।।३।।
१२ चन्द्रापीड: -चन्द्रमा को शिरोभूषण के रूप में धारण करनेवाले, १३ चन्द्रमौलि: - सिरपर चन्द्रमा का मुकुट धारण करनेवाले, १४ विश्वम् - सर्वस्वरूप, १५ विश्वम्भरेश्वर: - विश्व का भरण-पोषण करनेवाले श्रीविष्णु के भी ईश्वर, १६ वेदान्तसारसंदोह: - वेदान्त के सारतत्त्व सच्चिदानन्दमय ब्रह्म की साकार मूर्ति, १७ कपाली - हाथमें कपाल धारण करनेवाले, १८ नीललोहित: - (गलेमें) नील और (शेष अंगोंमें) लोहित-वर्णवाले।।३।।
ध्यानाधारोऽपरिच्छेद्यो गौरीभर्ता गणेश्वर:।अष्टमूर्तिर्विश्वमूर्तिस्त्रिवर्गस्वर्गसाधन:।।४।।
१९ ध्यानाधार: - ध्यान के आधार, २० अपरिच्छेद्य: -देश, काल और वस्तु की सीमा से अविभाज्य, २१ गौरीभर्ता - गौरी अर्थात् पार्वतीजी के पति, २२ गणेश्वर: - प्रमथगणों के स्वामी, २३ अष्टमूर्ति: - जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी और यजमान-इन आठ रूपोंवाले, २४ विश्वमूर्ति: - अखिल ब्रह्माण्डमय विराट-पुरुष, २५ त्रिवर्गस्वर्गसाधन: - धर्म, अर्थ, काम तथा स्वर्ग की प्राप्ति करानेवाले।।४।।
ज्ञानगम्यो दृढप्रज्ञो देवदेवस्त्रिलोचन:।वामदेवो महादेव: पटु: परिवृढो दृढ:।।५।।
२६ ज्ञानगम्य: - ज्ञान से ही अनुभव में आने के योग्य, २७ दृढप्रज्ञ: - सुस्थिर बुद्धिवाले, २८ देवदेव: - देवताओं के भी आराध्य, २९ त्रिलोचन: - सूर्य, चन्द्रमा और अग्निरूप तीन नेत्रोंवाले, ३० वामदेव: - लोक के विपरीत स्वभाववाले देवता, ३१ महादेव: - महान् देवता ब्रह्मादिकों के भी पूजनीय, ३२ पटु: - सब कुछ करनेमें समर्थ एवं कुशल, ३३ परिवृढ: - स्वामी, ३४ दृढ: - कभी विचलित न होनेवाले।।५।।
|