गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
इस काशीपुरी में शिवभक्तों द्वारा अनेक शिवलिंग स्थापित किये गये हैं। पार्वति! वे सम्यूर्ण अभीष्टों को देनेवाले और मोक्षदायक हैं। चारों दिशाओंमें पाँच-पाँच कोस फैला हुआ यह क्षेत्र 'अविमुक्त' कहा गया है, यह सब ओर से मोक्षदायक है। जीव को मृत्युकाल में यह क्षेत्र उपलब्ध हो जाय तो उसे अवश्य मोक्ष की प्राप्ति होती है। यदि निष्पाप मनुष्य काशी में मरे तो उसका तत्काल मोक्ष हो जाता है और जो पापी मनुष्य मरता है वह कायव्यूहों को प्राप्त होता है। उसे पहले यातना का अनुभव करके ही पीछे मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुन्दरि! जो इस अविमुक्त क्षेत्र में पातक करता है, वह हजारों वर्षों तक भैरवी यातना पाकर पाप का फल भोगने के पश्चात् ही मोक्ष पाता है। शतकोटि कल्पों में भी अपने किये हुए कर्म का क्षय नहीं होता। जीव को अपने द्वारा किये गये शुभाशुभ कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। केवल अशुभ कर्म नरक देनेवाला होता है? केवल शुभ कर्म स्वर्ग की प्राप्ति करानेवाला होता है तथा शुभ और अशुभ दोनों कर्मों से मनुष्ययोनि की प्राप्ति बतायी गयी है। अशुभ कर्म की कमी और शुभ कर्म की अधिकता होनेपर उत्तम जन्म प्राप्त होता है। शुभ कर्म की कमी और अशुभ कर्म की अधिकता होनेपर यहाँ अधम जन्म की प्राप्ति होती है। पार्वति! जब शुभ और अशुभ दोनों ही कर्मों का क्षय हो जाता है तभी जीव को सच्चा मोक्ष प्राप्त होता है। यदि किसी ने पूर्वजन्म में आदरपूर्वक काशी का दर्शन किया है तभी उसे इस जन्म में काशी में पहुँचकर मृत्यु की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य काशी जाकर गंगा में स्नान करता है उसके क्रियमाण और संचित कर्म का नाश हो जाता है। परंतु प्रारब्ध कर्म भोगे बिना नष्ट नहीं होता, यह निश्चित बात है। जिसकी काशी में मुक्ति हो जाती है, उसके प्रारब्ध कर्म का भी क्षय हो जाता है। प्रिये! जिसने एक ब्राह्मण को भी काशीवास करवाया है, वह स्वयं भी काशीवास का अवसर पाकर मोक्ष लाभ करता है।
सूतजी कहते हैं- मुनिवरो! इस तरह काशी का तथा विश्वेश्वरलिंग का प्रचुर माहात्म्य बताया गया है जो सत्पुरुषों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है। इसके बाद मैं त्र्यम्बक नामक ज्योतिर्लिंग का माह्यत्म्य बताऊंगा, जिसे सुनकर मनुष्य क्षणभर में समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
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