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शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

द्विजो! अज्ञान अनेक प्रकार का होता है परंतु विज्ञान का एक ही स्वरूप है। वह अनेक प्रकार का नहीं होता। उसको समझने का प्रकार मैं बताऊँगा, तुम लोग आदरपूर्वक सुनो। ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त जो कुछ भी यहाँ देखा जाता है वह सब शिवरूप ही है। उसमें नानात्व की कल्पना मिथ्या है। सृष्टि के पूर्व भी शिव की सत्ता बतायी गयी है सृष्टि के मध्य में भी शिव विराज रहे हैं सृष्टि के अन्त में भी शिव रहते हैं और जब सब कुछ शून्यता में परिणत हो जाता है उस समय भी शिव की सत्ता रहती ही है। अत: मुनीश्वरो! शिव को ही चतुर्गुण कहा गया है। वे ही शिव शक्तिमान् होनेके कारण 'सगुण' जानने योग्य हैं। इस प्रकार वे सगुण-निर्गुण के भेद से दो प्रकारके हैं। जिन शिव ने ही भगवान् विष्णु को सम्पूर्ण सनातन वेद, अनेक वर्ण, अनेक मात्रा तथा अपना ध्यान एवं पूजन दिये हैं वे ही सम्पूर्ण विद्याओं के ईश्वर हैं - ऐसी सनातन श्रुति है। अतएव शम्भु को 'वेदों का प्राकट्यकर्ता' तथा 'वेदपति' कहा गया है। वे ही सबपर अनुग्रह करने वाले साक्षात् शंकर हैं। कर्ता, भर्ता, हर्ता, साक्षी तथा निर्गुण भी वे ही हैं। दूसरों के लिये काल का मान है परंतु कालस्वरूप रुद्र के लिये काल की कोई गणना नहीं है; क्योंकि वे साक्षात् स्वयं महाकाल हैं और महाकाली उनके आश्रित हैं। ब्राह्मण, रुद्र और काली को एक-से ही बताते हैं। उन दोनों ने सत्य लीला करनेवाली अपनी इच्छा से ही सब कुछ प्राप्त किया है। शिव का कोई उत्पादक नहीं है। उनका कोई पालक और संहारक भी नहीं है। ये स्वयं सबके हेतु हैं। एक होकर भी अनेकता को प्राप्त हो सकते हैं और अनेक होकर भी एकताको। एक ही बीज बाहर होकर वृक्ष और फल आदि के रूप में परिणत होता हुआ पुन: बीजभाव को प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार शिवरूपी महेश्वर स्वयं एक से अनेक होने में हेतु हैं। यह उत्तम शिवज्ञान तत्त्वत: बताया गया है। ज्ञानवान् पुरुष ही इसको जानता है दूसरा नहीं।

मुनि बोले- सूतजी! आप लक्षण सहित ज्ञान का वर्णन कीजिये, जिसको जानकर मनुष्य शिवभाव को प्राप्त हो जाता है। सारा जगत् शिव कैसे है अथवा शिव ही सम्पूर्ण जगत् कैसे हैं?

ऋषियोंका यह प्रश्न सुनकर पौराणिक-शिरोमणि सूतजी ने भगवान् शिव के चरणारविन्दों का चिन्तन करके उनसे कहा।

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