मूल्य रहित पुस्तकें >> रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
जनकसुता समेत रघुराई।
पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई।।
बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे।
नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे।।2।।
पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई।।
बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे।
नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे।।2।।
श्रीजानकीजीके सहित श्रीरघुनाथजीको देखकर मुनियों का समुदाय
अत्यन्त ही हर्षित हुआ। तब ब्राह्मणों ने वेदमन्त्रोंका उच्चारण किया।
आकाशमें देवता और मुनि जय हो, जय हो ऐसी पुकार करने लगे।।2।।
प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा।
पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा।।
सुत बिलोकि हरषीं महतारी।
बार बार आरती उतारी।।3।।
पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा।।
सुत बिलोकि हरषीं महतारी।
बार बार आरती उतारी।।3।।
[सबसे] पहले मुनि वसिष्ठजीने तिलक किया। फिर उन्होंने सब
ब्राह्मणों को [तिलक करनेकी] आज्ञा दी। पुत्रको राजसिंहासनपर देखकर माताएँ
हर्षित हुईं और उन्होंने बार-बार आरती उतारी।।3।।
बिप्रन्ह दान बिबिधि बिधि दीन्हे।
जाचक सकल अजाचक कीन्हे।।
सिंघासन पर त्रिभुवन साईं।
देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाईं।।4।।
जाचक सकल अजाचक कीन्हे।।
सिंघासन पर त्रिभुवन साईं।
देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाईं।।4।।
उन्होंने ब्राह्मणों को अनेकों प्रकारके दान दिये और सम्पूर्ण
याचकों को अयाचक बना दिया (मालामाल कर दिया)। त्रिभुवन के स्वामी
श्रीरामचन्द्रजीको [अयोध्या के ] सिंहासन पर [विराजित] देखकर देवताओंने
नगाड़े बजाये।।4।।
छं.-नभ दुंदुभीं बाजहिं बिपुल गंधर्ब किंनर गावहीं।
नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं।।
भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते।
गहें छत्र चामर ब्यजन धनु असि चर्म सक्ति बिराजते।।1।।
नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं।।
भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते।
गहें छत्र चामर ब्यजन धनु असि चर्म सक्ति बिराजते।।1।।
आकाश में बहुत-से नगाड़े बज रहे हैं गन्धर्व और किन्नर गा रहे
हैं। अप्सराओंके झुंड-के-झुंड नाच रहे हैं। देवता और मुनि परमानन्द प्राप्त
कर रहे हैं। भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्नजी, विभीषण, अंगद, हनुमान् और सुग्रीव
आदिसहित क्रमशः छत्र, चँवर, पंखा, धनुष, तलवार, ढाल और शक्ति लिये हुए
सुशोभित हैं।।1।।
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