मूल्य रहित पुस्तकें >> रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
पुर सोभा कछु बरनि न जाई।
बाहेर नगर परम रुचिराई।।
देखत पुरी अखिल अघ भागा।
बन उपबन बापिका तड़ागा।।4।।
बाहेर नगर परम रुचिराई।।
देखत पुरी अखिल अघ भागा।
बन उपबन बापिका तड़ागा।।4।।
नगर की शोभा तो कुछ कही नहीं जाती। नगर के बाहर भी परम सुन्दरता
है। श्रीअयोध्यापुरी के दर्शन करते ही सम्पूर्ण पाप भाग जाते हैं। [वहाँ] वन
उपवन बावलियाँ और तालाब सुशोभित हैं।।4।।
छं.-बापीं तड़ाग अनूप कूप मनोहरायत सोहहिं।
सोपान सुंदर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहिं।।
बहु रंग कंज अनेक खग कूजहिं मधुप गुंजारहीं।।
आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हंकारहीं।।
सोपान सुंदर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहिं।।
बहु रंग कंज अनेक खग कूजहिं मधुप गुंजारहीं।।
आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हंकारहीं।।
अनुपम बावलियाँ, तालाब और मनोहर तथा विशाल कुएँ शोभा दे रहे
हैं, जिनकी सुन्दर [रत्नोंकी] सीढ़ियाँ और निर्मल जल देखकर देवता और मुनितक
मोहित हो जाते हैं। [तालाबोंमें] अनेक रंगोंके कमल खिल रहे हैं, अनेकों पक्षी
पूज रहे हैं और भौंरे गुंजार कर रहे हैं। [परम] रमणीय बगीचे कोयल आदि
पक्षियोंकी [सुन्दर बोली से] मानो राह चलनेवालों को बुला रहे हैं।।
दो.-रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनि कि जाइ।
अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ।।29।।
अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ।।29।।
स्वयं लक्ष्मीपति भगवान् जहाँ राजा हों, उस नगर का कहीं वर्णन
किया जा सकता है? अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ और समस्त सुख-सम्पत्तियाँ
अयोध्यामें छा रही हैं।।29।।
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