मूल्य रहित पुस्तकें >> रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
चौ.-भ्रातन्ह सहित रामु एक बारा।
संग परम प्रिय पवनकुमारा।।
सुंदर उपबन देखन गए।
सब तरु कुसुमित पल्लव नए।।1।।
संग परम प्रिय पवनकुमारा।।
सुंदर उपबन देखन गए।
सब तरु कुसुमित पल्लव नए।।1।।
एक बार भाइयोंसहित श्रीरामचन्द्रजी परम प्रिय हनुमान् जी को साथ
लेकर सुन्दर उपवन देखने गये। वहाँ के सब वृक्ष फूले हुए और नये पत्तोंसे
युक्त थे।।1।।
जानि समय सनकादिक आए।
तेज पुंज गुन सील सुहाए।।
ब्रह्मानंद सदा लयलीना।
देखत बालक बहुकालीना।।2।।
तेज पुंज गुन सील सुहाए।।
ब्रह्मानंद सदा लयलीना।
देखत बालक बहुकालीना।।2।।
सुअवसर जानकर सनकादि मुनि आये, जो तेजके पुंज सुन्दर गुण और
शीलसे युक्त तथा सदा ब्रह्मानन्द में लवलीन रहते हैं। देखने में तो वे बालक
लगते हैं; परंतु हैं बहुत समय के ।।2।।
रूप धरें जनु चारिउ बेदा।
समदरसी मुनि बिगत बिभेदा।।
आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं।
रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं।।3।।
समदरसी मुनि बिगत बिभेदा।।
आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं।
रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं।।3।।
मानो चारों वेद ही बालकरूप धारण किये हों। वे मुनि समदर्शी और
भेदरहित हैं। दिशाएँ ही उनके वस्त्र हैं। उनके एक ही व्यसन है कि जहाँ
श्रीरघुनाथजी की चरित्र-कथा होती है वहाँ जाकर वे उसे अवश्य सुनते हैं।।3।।
तहाँ रहे सनकादि भवानी।
जहँ घटसंभव मुनिबर ग्यानी।।
राम कथा मुनिबर बहु बरनी।
ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी।।4।।
जहँ घटसंभव मुनिबर ग्यानी।।
राम कथा मुनिबर बहु बरनी।
ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी।।4।।
[शिवजी कहते हैं-] हे भवानी! सनकादि मुनि वहाँ गये थे (वहीं से
चले आ रहे थे) जहाँ ज्ञानी मुनिश्रेष्ठ श्रीअगस्त्य जी रहते थे। श्रेष्ठ मुनि
ने श्रीरामजी की बहुत-सी कथाएँ वर्णन की थीं, जो ज्ञान उत्पन्न करने में उसी
प्रकार समर्थ हैं, जैसे अरणि लकड़ी से अग्नि उत्पन्न होती है।।4।।
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