लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)

रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1980
पृष्ठ :135
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 4471
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

234 पाठक हैं

वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।


मुनि मन मानस हंस निरंतर।
चरन कमल बंदित संकर।।
रघुकुल केतु सेतु श्रुति रच्छक।
काल करम सुभाउ गुन भच्छक।।4।।

हे मुनियों के मन रूपी मानसरोवर में निरन्तर निवास करनेवाले हंस ! आपके चरणकमल ब्रह्माजी और शिवजी द्वारा वन्दित हैं। आप रघुकुलके केतु, वेदमर्यादा के राक्षक और काल कर्म स्वभाव तथा गुण [रूप बन्धनों] के भक्षक (नाशक) हैं।।4।।

तारन तरन हरन सब दूषन।
तुलसिदास प्रभु त्रिभुवन भूषन।।5।।

आप तरन-तारन (स्वयं तरे हुए और दूसरोंको तारनेवाले) तथा सब दोषोंको हरनेवाले हैं। तीनों लोकोंके विभूषण आप ही तुलसीदास के स्वामी हैं।।5।।

दो.-बार बार अस्तुति करि प्रेम सहित सिरु नाइ।
ब्रह्म भवन सनकादिक गे अति अभीष्ट बर पाइ।।35।।

प्रेमसहित बार-बार स्तुति करके और सिर नवाकर तथा अपना अत्यन्त मनचाहा वर पाकर सनकादि मुनि ब्रह्मलोक को गये।।35।।

चौ.-सनकादिक बिधि लोक सिधाए।
भ्रातन्ह राम चरन सिरु नाए।।
पूछत प्रभुहि सकल सकुचाहीं।
चितवहिं सब मारुतसुत पाहीं।।1।।

सनकादि मुनि ब्रह्मलोकको चले गये। तब भाइयोंने श्रीरामजीके चरणोंमें सिर नवाया। सब भाई प्रभु से पूछते सकुचाते हैं। [इसलिये] सब हनुमान् जी की ओर देख रहे हैं।।1।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

ANIL KUMAR

डाऊनलोड उत्तरकाण्ड श्रीरामचरितमानस

Vikram Gupta

Download link is not working.