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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :59
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 538
आईएसबीएन :000000000

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निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन।
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः।।36।।

हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा।।36।।

वह आगे कहता है कि, हे जनार्दन अर्थात् आर्त लोगों के भगवन् धृतराष्ट्र के पुत्रों अर्थात् दुर्योधन, दुःशासन आदि को युद्ध में मारकर पाण्डवों को किस प्रकार की प्रसन्नता प्राप्त हो सकेगी! इन आततायियों के संसर्ग में ही हानि है, उनको मारने से तो और भी पाप लगेगा।

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