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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :59
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 538
आईएसबीएन :000000000

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कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।40।।

कुल के नाश से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं, धर्म के नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है।।40।।

अर्जुन कहता है, यदि मैं अपने ही कुल के लोगों की हत्या करूँगा और इस प्रकार अपने ही कुल का नाश करूँगा, तब आदिकाल से हमारे कुल के धर्म का पारायण करने के लिए लोग नहीं रहेंगे। कुल धर्म का नाश होने से, कुल के शेष बचे लोगों को सही मार्ग दिखाने वाले नहीं रह जाते और वे लोग पाप में प्रवृत्त हो जाते हैं।

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