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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :59
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 538
आईएसबीएन :000000000

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संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।

वर्णसंकर सन्तान कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिये ही होता है। लुप्त हुई पिण्ड और जल की क्रियावाले अर्थात् श्राद्ध और तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं।।42।।

वर्णसंकर सन्तानें अपना कुल निश्चित न कर पाने के कारण सामाजिक रीतियों का निर्वाह नहीं करते हैं। इस प्रकार पितरों को पिण्ड और जलक्रिया आदि से वंचित रहना पड़ता है, इस प्रकार पितर भी नीच अवस्था को प्राप्त होते हैं।

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।।43।।

इन वर्णसंकर कारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल-धर्म और जाति-धर्म नष्ट हो जाते हैं।।43।।

इस प्रकार कुल धर्म और जाति धर्म सभी नष्ट होते हैं। कुल मिलाकर दिग्भ्रमित अर्जुन नये-नये कारणों को बता कर कृष्ण से अपने मत का समर्थन चाहता है।

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