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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :59
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 538
आईएसबीएन :000000000

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यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्।।46।।

यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करनेवाले को शस्त्र हाथ में लिये हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मारना भी मेरे लिये अधिक कल्याणकारक होगा।।46।।

अर्जुन को युद्ध संबंधी अपने इस निर्णय के लिए अत्याधिक पश्चाताप् होने लगा है। वह अपने इस निर्णय के लिए इतनी अधिक आत्म-ग्लानि का अनुभव करने लगता है कि, वह इस पाप से बचने के लिए युद्ध में स्वयं की हत्या हो जाने देने को भी अच्छा काम मानता है।

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