मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 2 श्रीमद्भगवद्गीता भाग 2महर्षि वेदव्यास
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गीता के दूसरे अध्याय में भगवान् कृष्ण सम्पूर्ण गीता का ज्ञान संक्षेप में अर्जुन को देते हैं। अध्यात्म के साधकों के लिए साधाना का यह एक सुगम द्वार है।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:।।23।।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत:।।23।।
इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको
जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता।।23।।
संसार के बड़े से बड़े और घातक शस्त्र इस जगत् की वस्तुओं को हानि पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि हम आज के सबसे घातक अस्त्र परमाणु बम अथवा हाइड्रोजन बम का ही उदाहरण लें तो इस प्रकार के बम पृथ्वी पर निवास करने वाले मनुष्यों और वनस्पति आदि के लिए घातक हो सकते हैं, परंतु इस प्रकार के बमों से कहीं अधिक शक्तिशाली और घातक विस्फोट सूर्य की सतह पर हर क्षण होते रहते हैं। परमात्मा तो केवल हमारे सूर्य और सौर्यमण्डल ही नहीं बल्कि अन्य सौरमण्डलों से भी बड़ा और शक्तिशाली हर जगह व्याप्त है। ऐसी अवस्था में परमात्मा को काटकर, जलाकर अथवा जल में गलाकर किसी प्रकार की क्षति की बात पहुँचाने का विचार भी पूर्णतः निरर्थक है।
संसार के बड़े से बड़े और घातक शस्त्र इस जगत् की वस्तुओं को हानि पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि हम आज के सबसे घातक अस्त्र परमाणु बम अथवा हाइड्रोजन बम का ही उदाहरण लें तो इस प्रकार के बम पृथ्वी पर निवास करने वाले मनुष्यों और वनस्पति आदि के लिए घातक हो सकते हैं, परंतु इस प्रकार के बमों से कहीं अधिक शक्तिशाली और घातक विस्फोट सूर्य की सतह पर हर क्षण होते रहते हैं। परमात्मा तो केवल हमारे सूर्य और सौर्यमण्डल ही नहीं बल्कि अन्य सौरमण्डलों से भी बड़ा और शक्तिशाली हर जगह व्याप्त है। ऐसी अवस्था में परमात्मा को काटकर, जलाकर अथवा जल में गलाकर किसी प्रकार की क्षति की बात पहुँचाने का विचार भी पूर्णतः निरर्थक है।
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।
नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन:।।24।।
नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन:।।24।।
क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और
निःसन्देह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहनेवाला और
सनातन है।।24।।
अर्जुन एक योद्धा है इसलिए युद्ध में वह अन्य लोगों के शरीरों में बाणों से छेदन करना उसके लिए स्वाभाविक प्रक्रिया थी। आत्मा अच्छेद्य है। जिस वस्तु का आकार, आयतन अथवा संहति होती है उसी का छेदन किया जा सकता है, इस प्रकार आत्मा में उपर्युक्त कोई भी गुण न होने के कारण उसे छेदा नहीं जा सकता। इसी प्रकार आकार, आयतन और संहति के गुणों वाली वस्तुओं को ही जलाया जा सकता है। आत्मा का इन गुणों से रहित होने के कारण उसे जलाना संभव नहीं है। जल अथवा दृव्य के कारण गीला करने, डुबाने अथवा हानि पहुँचने की क्रिया केवल उन वस्तुओं पर प्रभाव डालती है जिन्हें जल के आधिक्य से समस्या होती है। इसी प्रकार जल के सूख जाने से जिन वस्तुओं को समस्या हो सकती है, जैसे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी अथवा मनुष्यों के शरीर आदि। परंतु आत्मा इन सभी गुणों वाली वस्तुओं से परे है और इस कारण उसे इनसे किसी प्रकार की हानि का कोई भय नहीं है।
अर्जुन एक योद्धा है इसलिए युद्ध में वह अन्य लोगों के शरीरों में बाणों से छेदन करना उसके लिए स्वाभाविक प्रक्रिया थी। आत्मा अच्छेद्य है। जिस वस्तु का आकार, आयतन अथवा संहति होती है उसी का छेदन किया जा सकता है, इस प्रकार आत्मा में उपर्युक्त कोई भी गुण न होने के कारण उसे छेदा नहीं जा सकता। इसी प्रकार आकार, आयतन और संहति के गुणों वाली वस्तुओं को ही जलाया जा सकता है। आत्मा का इन गुणों से रहित होने के कारण उसे जलाना संभव नहीं है। जल अथवा दृव्य के कारण गीला करने, डुबाने अथवा हानि पहुँचने की क्रिया केवल उन वस्तुओं पर प्रभाव डालती है जिन्हें जल के आधिक्य से समस्या होती है। इसी प्रकार जल के सूख जाने से जिन वस्तुओं को समस्या हो सकती है, जैसे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी अथवा मनुष्यों के शरीर आदि। परंतु आत्मा इन सभी गुणों वाली वस्तुओं से परे है और इस कारण उसे इनसे किसी प्रकार की हानि का कोई भय नहीं है।
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