मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 2 श्रीमद्भगवद्गीता भाग 2महर्षि वेदव्यास
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गीता के दूसरे अध्याय में भगवान् कृष्ण सम्पूर्ण गीता का ज्ञान संक्षेप में अर्जुन को देते हैं। अध्यात्म के साधकों के लिए साधाना का यह एक सुगम द्वार है।
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।61।।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।61।।
इसलिये साधक को चाहिये कि वह उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में
करके समाहित चित्त हुआ मेरे परायण होकर ध्यान में बैठे, क्योंकि जिस पुरुष की
इन्द्रियाँ वश में होती हैं, उसी की बुद्धि स्थिर हो जाती है।।61।।
भगवान का ध्यान करने वाले साधक को ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। प्रतिदिन कुछ समय के लिए उसे एकान्त स्थान में बैठकर और अपनी सभी इंद्रियों को नियंत्रित करने का अभ्यास करना चाहिए। इस प्रकार नित्य प्रति ध्यान के अभ्यास और मनन से उसका चित शुद्ध होता जाता है। इस प्रकार चित्त शुद्ध हुए व्यक्ति की बुद्धि भी धीरे-धीरे मन के प्रभाव से निकल स्वयं स्थिर हो जाती है।
भगवान का ध्यान करने वाले साधक को ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। प्रतिदिन कुछ समय के लिए उसे एकान्त स्थान में बैठकर और अपनी सभी इंद्रियों को नियंत्रित करने का अभ्यास करना चाहिए। इस प्रकार नित्य प्रति ध्यान के अभ्यास और मनन से उसका चित शुद्ध होता जाता है। इस प्रकार चित्त शुद्ध हुए व्यक्ति की बुद्धि भी धीरे-धीरे मन के प्रभाव से निकल स्वयं स्थिर हो जाती है।
ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।
संगात्सञ्जायतेकाम: कामात्कोधोऽभिजायते।।62।।
संगात्सञ्जायतेकाम: कामात्कोधोऽभिजायते।।62।।
विषयों का चिन्तन करनेवाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो
जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न
पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है।।62।।
जीवन में नाना प्रकार के विषय और उनकी कामनाएँ उपलब्ध हैं। पिछले लगभग सौ से अधिक वर्षों में भौतिक प्रगति अत्यंत द्रुत गति से हुई है। इस प्रगति के कारण, और विशेषकर आजकल के समय में टीवी, इंटरनेट आदि के सहज ही उपलब्ध होने के कारण पहले साधारणतः न उपलब्ध होने वाली वस्तुएँ भी साधारण से साधारण व्यक्ति को देखने के लिए उपलब्ध हैं। ऐसी अवस्था में हर व्यक्ति इन सभी वस्तुओं को पाना चाहता है। आजकल गावोँ में रहने वाले सभी जनों को भी फेशबुक, व्हाट्सऐप आदि के माध्यम से नाना प्रकार की लुभावनी वस्तओं को जान पाना संभव हो सका है। परंतु एक साथ सभी की इतनी भौतिक प्रगति हो जाये, कि साधारण जन भी अन्य धनवान लोगों की भाँति इनका उपयोग कर सकें, यह सरल नहीं है। इन कामनाओँ की जब पूर्ति नहीं होती तो स्वाभाविक है कि हर व्यक्ति अपना संयम रख पाये यह संभव नहीं है। इसके फलस्वरूप वे क्रोधित हो जाते हैं। यह क्रोध कभी अपने-आप पर, कभी अन्य परिवारजनों पर और कभी समाज पर केंद्रित होता है।
जीवन में नाना प्रकार के विषय और उनकी कामनाएँ उपलब्ध हैं। पिछले लगभग सौ से अधिक वर्षों में भौतिक प्रगति अत्यंत द्रुत गति से हुई है। इस प्रगति के कारण, और विशेषकर आजकल के समय में टीवी, इंटरनेट आदि के सहज ही उपलब्ध होने के कारण पहले साधारणतः न उपलब्ध होने वाली वस्तुएँ भी साधारण से साधारण व्यक्ति को देखने के लिए उपलब्ध हैं। ऐसी अवस्था में हर व्यक्ति इन सभी वस्तुओं को पाना चाहता है। आजकल गावोँ में रहने वाले सभी जनों को भी फेशबुक, व्हाट्सऐप आदि के माध्यम से नाना प्रकार की लुभावनी वस्तओं को जान पाना संभव हो सका है। परंतु एक साथ सभी की इतनी भौतिक प्रगति हो जाये, कि साधारण जन भी अन्य धनवान लोगों की भाँति इनका उपयोग कर सकें, यह सरल नहीं है। इन कामनाओँ की जब पूर्ति नहीं होती तो स्वाभाविक है कि हर व्यक्ति अपना संयम रख पाये यह संभव नहीं है। इसके फलस्वरूप वे क्रोधित हो जाते हैं। यह क्रोध कभी अपने-आप पर, कभी अन्य परिवारजनों पर और कभी समाज पर केंद्रित होता है।
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