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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘तब ठीक है! ऊपर-नीचे सीढ़ियां चढ़नी नहीं पडेंगी।’
‘रात को तुम नीचे अपने पति के पास जाकर सो सकोगी।’
‘मुझमें इसकी कुछ अधिक लालसा नहीं रही।’
‘यह तुम दोनों के परस्पर विचार करने की बात है। वैसे तुम अकेली ऊपर सोना चाहो तो अकेले के लिए एक कमरा मिल सकेगा।’
‘‘इस प्रकार के छोटे-मोटे प्रबन्ध कर मैंने बाजार से कागज इत्यादि मंगवाए और अपनी पुस्तक लिखनी आरम्भ कर दी। प्रारम्भिक अध्याय तो मैंने पीछे लिखे थे। सबसे पहले मिस्टर जिन्ना की मृत्यु के विषय में ही जानकारी प्राप्त करने का यत्न किया।
‘‘जिन्ना साहब की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी। यह ठीक है कि किसी ने उनकी हत्या नहीं की, परन्तु यह भी निर्विवाद है कि कश्मीर युद्ध का परिणाम उनकी समय से पूर्व मृत्यु का बहुत बड़ा कारण हुआ है।
‘‘मुझे जिन्ना साहब के एक प्राइवेट ‘डिस्पैच’ की नकल मिली थी। यह मैंने अपनी पुस्तक में दी है। यह डिस्पैच मेजर जनरल अकबर खां को भेजा गया था। उसे सेना से छुट्टी लेकर सरहदी कबायलियों को संगठित कर कश्मीर पर आक्रमण करने के विषय में कहा गया था। सरकार की ओर से युद्ध सामग्री देने का आश्वासन भी दिया गया था। पाकिस्तान सेना के घटक इसमें सम्मिलित नहीं किए जा सके।
‘‘सेना और सामान पाकिस्तान से कबायली क्षेत्रों में पहुंचाने में दो मास लगे और बीस अक्टूबर सन् १९४७ को बीस सहस्त्र कबायली बन्दूकों और ‘ऐम्युनिशन’ (गोला-बारूद) सहित दो हजार से ऊपर ट्रकों में मुजफ्फराबाद की सड़क पर चल पड़े।
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