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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘आपके सिर पर बहशत सवार हो रही थी।’’
‘‘यू बिल्ली कैट! तुम क्या समझती हो कि मैं तुम्हें इन्नोसैण्ट मेड’’ (एक निरीह कुमारी) समझता हूँ। इंगलैंड में रहती हुई तुम पाक-साफ हो, मैं मान नहीं सकता।’’
‘‘पापा...!’’
इस समय नसीम आयी और बोली, ‘‘अज़ीज साहब हुजूर से मिलने आये हैं।’’
‘‘हां, उनको ले आओ।’’
अज़ीज़ साहब आये तो अय्यूब खां बोला, ‘‘यह जस्टिस एस० ए० रहमान को क्या हो गया है?’’
‘‘हुजूर! हवा का रुख बदल रहा है। पाकिस्तान के सब बड़े-बड़े अफसर और शहरी यहां की बन्द हवा से ऊब रहे हैं। भारत का रेडियो यहां के रेडियों से ज्यादा दिलचस्प होता है और लाहौर में प्रायः घरों में आल इण्डिया रेडियों सुना जाता है। वहां नेहरू साहब की खुले आम नुक्ता-चीनी होती है और यहां के लोग आपकी नुक्ता-चीनी करना चाहते हैं।’’
‘‘मगर हमारे हाई कमिश्नर ऐसी कोई बात नहीं लिखते।’’
‘‘मैं समझता हूं कि किसी समझदार अधिकारी को हाई कमिश्नर की मदद के लिए भेज दें।’’
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