|
उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
|
203 पाठक हैं |
|||||||
जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
4
यशोदा और तेजकृष्ण के पिता जब मेत्रेयी के क्वार्टर पर पहुंचे तो मिस्टर साइमन वहां उससे बैठा विवाह सम्बन्धी प्रबन्ध के विषय में विचार कर रहा था।
मिस्टर साइमन ने कहा था, ‘‘मैंने दो सप्ताह के ‘हनीमून’ के अवकाश का प्रबन्ध किया है। मैंने छुट्टी के लिए विश्वविद्यालय के अधिकारियों को लिखा है। वैसे मैं अपने विभाग के ‘चीफ़’ से मिल चुका हूं और उन्होंने कहा है कि छुट्टी मिल जाएगी।’’
‘‘एक ‘ऐप्लीकेशन’ तो मैंने भी आज दी है। आशा करती हूं कि स्वीकार हो जायेगी। मेरी और आपकी सर्विस में अन्तर है। मेरी नियुक्ति अभी अस्थायी है।’’
‘‘यदि तुम कहो तो मैं तुम्हारे विषय में भी वाइस चान्सलर साहब से मिल सकता हूं।’’
‘‘मैं तो यह कहती हूं कि यदि छुट्टी मिल गयी तो चलेंगें। जहां आप चाहेंगे, ले चलियेगा। और यदि छुट्टी नहीं नहीं मिली तो हम अपना ‘हनीमून ट्रिप’ लम्बी छुट्टियों तक स्थगित कर देंगे। विवाह अभी हो जायेगा और हनीमून दो महीने पीछे।’’
‘‘मैं तो यह सम्मति दूंगा कि तुम सेवा से त्याग-पत्र ही दे दो। क्योंकि विवाह के उपरान्त तुम्हें आर्थिक कष्ट तो रहेगा नहीं। मेरी ‘शेयार्ज़’ में और बैंक में सम्पत्ति एक मिलियन पौण्ड से अधिक है। मेरी आय इतनी है कि मैं स्वयं सर्विस छोड़ दूं तो भी हम भूखे नहीं मर जायेंगे।’’
मैत्रेयी ने कहा, ‘‘परन्तु हमारा जीवन तो विश्वविद्यालय से पृथक् हो जाएगा।’’
|
|||||

i 









