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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595
आईएसबीएन :9781613010143

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


तेज आया तो उसने पहले सरकारी और समाचार-पत्र वालों का धन्यवाद किया और कहा कि वह उसी दिन उचित अधिकारियों से मिलेगा।

सरकारी प्रतिनिधि ने कहा, ‘‘आपका ब्रीफ़-केस मैं ले जाने के लिए आया हूं। हमारे विदेश विभाग के मन्त्री का यह आग्रह है कि आपको शीघ्र ही उनके पास पहुंचना चाहिए।’’

‘‘मैंने अपने नेफा के ‘टूर’ के नोट्स अपने सामान के साथ शिलांग में एक सज्जन के घर रखे हुए थे और मेरे तिब्बत से लौटने पर मेरे सब सामान के साथ वे लापता थे। छूटने पर मैं उसके पास पहुंचा तो उसने बताया है कि जब शिलांग में लूट-मार मची तो वह अपनी पत्नी के साथ जान बचा कर भाग गया था। मेरा सामान अपने सामान के साथ अपने क्वार्टर में रख गया था। लौटने पर उसका मकान लूटा जा चुका था और मेरा सामान भी उसके साथ ही गया है। शेष मैं सायंकाल से पूर्व मन्त्री महोदय से मिलूंगा।’’

तेजकृष्ण अपने पिता की गाड़ी में सवार हुआ तो मां ने कह दिया, ‘‘तेज! बहुत दुर्बल हो गए हो!’’

‘‘मां! जब सब बात सुनोगी तो अपने भाग्य का धन्यवाद करोगी कि मैं यहां जीवित पहुंच सका हूं।’’

‘‘मैं कलकत्ता दो घण्टे के लिए ठहरा था। इस कारण मैंने शकुन्तला को हवाई पत्तन से टेलीफोन किया था और वह तथा जीजा जी मिलने आये थे। पन्द्रह-बीस मिनट तक ही बातचीत हो सकी थी। उन्होंने बताया था कि नज़ीर लापता है। उसी के लिए मैं दिल्ली में एक दिन ठहरा था। पता चला है कि या तो वह पाकिस्तानी जासूसों से मार डाली गयी है अथवा वह कहीं उनसे भयभीत छुपी हुई है।’’

‘‘मेरे पास समय नहीं था कि मैं उसके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करता।’’

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