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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘आखिर मैंने मजिस्ट्रेट को तनिक डांट के भाव में कहा, ‘‘मिस्टर मजिस्ट्रेट! आप छठे मजिस्ट्रेट हैं जो मेरे बयान लेने आये हैं। मेरे पहले बयानों का क्या हुआ?’’
‘‘मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘मुझे उन बयानों का ज्ञान नहीं है। मैं तो सैनिक विभाग की ओर से पता करने आया हूं कि आप चीन के गुप्तचर विभाग में है अथवा पाकिस्तान के।’’
‘‘इससे पहले मुझे तस्कर मान बयान लिये जाते थे। अब सैनिक गुप्तचर समझा गया था।’’
‘‘आखिर मैंने यही उचित समझा कि मैं यू० के० हाई कमिश्नर का पता बताऊं। मैंने कहा कि मैं इंग्लैंड का नागरिक हूं और मेरे विषय में यू० के० हाई कमिश्नर से पता किया जाए।’’
‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि सैनिक विभाग ने कमिश्नर साहब से पूछताछ की है और वहां से लिखा-पढ़ी के उपरान्त मुझे छोड़ा गया है।’’
‘‘गोहाटी के बन्दीगृह में और फिर पीछे दिल्ली में पता करने पर यह ज्ञान हुआ है कि मुझे पकड़वाने वाले वही तस्कर थे, जिन्होंने मुझे तिब्बत ले जाने का प्रबन्ध किया था। जब मैं शिलांग के डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय में मिस्टर टॉम के विषय में पूछताछ कर रहा था, तब एकाएक कुछ लोग अपने को पुलिस अधिकारी कह मुझे पकड़ने वहां पहुंच गए। मेरे बहुत कहने पर भी उन्होंने मुझे हथकड़ी लगा गोहाटी भेज दिया।’’
‘‘गोहाटी बन्दीगृह की अवस्था उस समय बहुत बुरी थी। वहां के नैतिक अपराधी तो छोड़े जा रहे थे और मुझ जैसे निर्दोष लोगों को, जिनके विषय में यह आरोप था कि तिब्बत से तस्करी और जासूसी करते हैं, पकड़ कर जेल में डाल दिया गया था।’’
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