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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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‘‘मैं जेल से छूट कर दिल्ली में नज़ीर के विषय में पूछताछ करता रहा हूँ। पाकिस्तान के सब अधिकारी बदल चुके थे। वहां से नज़ीर के विषय में कुछ पता नहीं चला। मेरे नेफा जाने से पहले पाकिस्तानी हाई कमिश्नर के एक अधिकारी लैफ्टिनैण्ट कर्नल अज़ीज़ अहमद से मुझे मालूम हुआ था कि पाकिस्तानी गवर्नर जनरल ने यह कहला भेजा था कि नज़ीर उसकी लड़की नहीं है और उसे पकड़ कर पाकिस्तान भेज दिया जाये।
‘‘मुझे सन्देह हो रहा है कि वह मार डाली गई है।’’
इरीन इस समाचार को सुनती हुई रोती रही।
तेजकृष्ण अब विचार करने लगा था कि वह समाचार-पत्र में ही कार्य करे अथवा अपने पिता का व्यवसाय करने लगे। मिस्टर करोड़ीमल का यह कहना था कि उसे समाचार-पत्र में ही काम करना चाहिए। उसने इस काम में यश अर्जित किया है तथा वह और अधिक उन्नति कर सकता है।
इस समय यशोदा ने तेज को बता दिया, ‘‘कल मैत्रेयी का विवाह है और उसका हमें निमन्त्रण है।’’
‘‘तो माँ! तुम उससे अभी तक सम्पर्क बनाये हुए हो?’’
‘‘तो उसने कुछ अपराध किया था जो उससे सम्पर्क तोड़ दिया जाता?’’
तेजकृष्ण इसका उत्तर नहीं दे सका।
मां ने कहा, ‘‘वह बहुत ही प्यारी और दृढ़ निष्ठा वाली लड़की है। उसका अपने प्रोफेसर विलियम साइमन से ही विवाह होने वाला है।’
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