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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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उक्त घटना सन् १९४१ की थी और अब सन् १९६२ आ गया था। तेजकृष्ण अब छब्बीस वर्ष का युवक था। वह एम० ए० ऑक्सन के बाद जर्नलिज़्म का ‘डिप्लोमा’ प्राप्त कर ‘टाइम्स लन्दन’ के सम्वाददाता का काम कर रहा था। उसे हिन्दुस्तान के समाचारों की रिपोर्टिंग पर नियुक्त किया गया था।
तेजकृष्ण का पिता अब सरकारी सेवा-कार्य से अवकाश प्राप्त कर पैंशन लेता हुआ लन्दन के बाहरी क्षेत्र में एक ‘कॉटेज’ बनाकर रहता था। वह सरकारी सेवा में और अब सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्त अवस्था में श्री के० एम० बागड़िया के नाम से विख्यात था। उनका पुत्र था तेजकृष्ण बागड़िया।
तेजकृष्ण लन्दन और दिल्ली के चक्कर लगाता रहता था। वह एक अच्छा-खासा वेतन पाता था, परन्तु वह इतने खुले हाथ से खर्च करता था कि वह अपने पिता से कुछ लेकर ही अपना जीवन चला सकता था।
मिस्टर तेजकृष्ण बागड़िया पहला व्यक्ति था जिसने ‘आक्साईचिन’ में चीनियों के सड़क बना लेने का सामाचार दिया था। यह समाचार उसके अपने पत्र ने प्रकाशित करने से इन्कार कर दिया था। ‘लन्दन टाइम्स’ अपने आपको सरकारी पत्र समझता था। इस कारण इस प्रकार की बात प्रकाशित करने से, जिससे की तृतीय विश्व युद्ध के आरम्भ होने की सम्भावना थी, वह संकोच अनुभव करता था।
तेज ने वही समाचार ‘मानचेस्टर गार्डियन’ में दिया तो प्रकाशित हो गया और चीन तथा भारत में तनातनी आरम्भ हो गई।
समाचार प्रकाशित हुआ तो जैसी आशा की जाती थी कि रूस और चीन में ठन जाएगी, ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसके विपरीत भारत ने चीन के साथ सीमावर्ती विवादों के विषय में एक श्वेत पत्रक प्रकाशित कर दिया।
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