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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595
आईएसबीएन :9781613010143

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


चाय आई और पी गई, परन्तु ड्राइवर नहीं आया। सायं साढ़े छः बजे ड्राइवर खाली गाड़ी लेकर लौटा। उसने बताया कि वह ‘क्राफर्ड ऐवेन्यू’ में नम्बर तीन सौ पांच पर गया था। वहां से वह अपनी आन्टी के पास पन्द्रह-बीस मिनट के लिए गया। जब लौटा तो छोटे साहब वहां नहीं थे। वहां एक अंग्रेज़ औरत थी। उसने बताया कि बाबू साहब ने अपने दफ्तर में टेलीफोन किया था और वहां से उनको ‘अर्जेन्ट काल’ आया तो वहां चले गये हैं।

इस पर मिस्टर बागड़िया ने ‘लन्दन टाइम्स’ के मैनेजर को टेलीफोन कर दिया। वह कार्यालय में नहीं था। उसके स्थान पर ऑफिस के सुपरिन्टेन्डेन्ट ने टेलीफोन पर तेजकृष्ण के विषय में पूछे जाने पर कहा, हाँ! वह कार्यालय में आये थे और मिस्टर मैनेजर से पांच-चार मिनट बात कर चले गए हैं। उनको जाते समय मैंने एक सौ पौण्ड नकद दिया है। साथ ही वह अपने वेतन का चैक लेकर गए हैं।’’

‘‘कहां गया है तेजकृष्ण?’’

‘‘मुझे पता नहीं। मैनेजर को ज्ञात होगा।’’

‘‘वह कहां हैं?’’

‘‘इस समय क्लब में गए हैं।’’

जब मिस्टर बागड़िया ने सब बात बताई तो घर के प्राणी एक दूसरे का मुख देखते रह गए। बागड़िया ने कहा, ‘‘मैं क्राफर्ज ऐवेन्यू में जाकर पता करता हूं।’’

मैत्रेयी अपना अटेची केस लेकर बोली, ‘‘पिताजी! मुझे रेल के स्टेशन पर पहुंचा दीजिए। मैं समझती हूं कि मुझे अपने काम में लग जाना चाहिए।’’

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