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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘हां साहब! आप क्या कहते हैं?’’ थानेदार ने अब्दुल हमीद से पूछा।
‘‘मैं अलहदा में बयान दूँगा।’’
‘‘तो चलिए थाने में। वहाँ यह हो सकेगा।’’
‘‘यहाँ होना ज्यादा ठीक रहेगा। क्यों यासीन! क्या कहते हो?’’ अब्दुल हमीद ने ज्ञानस्वरूप की ओर देखकर कहा।
‘‘यह तो इंस्पेक्टर साहब की मर्जी पर है।’’
‘‘तो चलिए! कहाँ बात करना चाहते हैं?’’
अब्दुल हमीद उठा और इंस्पेक्टर को तथा लड़के को लेकर खाने के कमरे से निकल गया।
एक मिनट के बाद ज्ञानस्वरूप वापस आ गया और अपनी छोटी अम्मी सालिहा से बोला, ‘‘अब्बाजान कर रहे हैं कि बम्बई लौटने के लिए तैयार हो जाओ।’’
वह उठ खड़ी हुई और सब खाने के कमरे से बाहर निकल ड्राइंगरूम में चले आये।
पाँच मिनट में एक सिपाही आया और ज्ञानस्वरूप को बुला कर स्टडीरूम में ले गया।
इंस्पेक्टर का ज्ञानस्वरूप को कहना था, ‘‘आपके वालिद साहब जो हुआ है, उस पर अफसोस ज़ाहिर कर रहे हैं। आप क्या चाहते हैं?’’
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