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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘कभी भी हो। होगा यह निहायत ही तकलीफ देह।’’
‘‘मगर किसको तकलीफ होगी?’’
‘‘किसको होगी?’’ सालिहा ने पूछ लिया।
‘‘जो उस वक्त जिन्दा रहेंगे। जिन्हें उड़ा-उड़ा कर इस जमीन से किसी दूसरे सियारे पर ले जाया जाएगा।’’
तो उनमें मैं नहीं हूँगी क्या?’’
‘‘तुम कैसे हो सकोगी? तुम तो कब्र में पड़ी होगी। कयामत के दिन तक तुम, हम सब वहीं सोए रहेंगे।’’
‘‘अम्मी! हम तो इसी ज़मीन पर रहेंगे। हमें कयामत के दिन ही कब्रों से उठाया जाएगा। और हमारे अमालों के मुताबिक हमें बहिश्त या जहन्नुम में भेजा जाएगा।’’
‘‘मगर यह तो तुम्हारी बीवी ने बताया ही नहीं। उसने तो कहा है कि हमको किसी दूसरे सियारे पर ले जाकर बसाया जाएगा।’’
‘‘मगर उसका मतलब उनसे नहीं था, जो कबरों में दफनाएँ हुए होंगे।’’
‘‘उस मुसीबत के वक्त जो कुछ भी होगा, वह उस वक्त इस जमीन पर चलते-फिरते खाते-पीते लोगों के लिए होगा। हम कब्र में पड़े लोग तो आराम की नींद सोते रहेंगे।’’
‘‘मुझे इस सबकी न तो याद आई थी और न ही मैंने इस हालत पर कभी गौर किया था।’’
‘‘तो अम्मी, फिक्र छोड़ो। जो कुछ प्रज्ञा ने बताया है, वह हमारे लिए नहीं है। वह उसके अपने लिए हो सकता है। तुम और हम मोमिनों को लिए नहीं हो सकता।’’
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