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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘यह कह रही है कि यहाँ हमारे घर में रहना चाहती है। मैंने कारण पूछा तो यह कहती है कि दादा से शादी करेगी। मैंने इसे कहा है कि यह अभी नाबालिग़ है, यह अपने वालिद की इजाज़त के बिना शादी नहीं कर सकती। जो भी बिना उनकी मर्जी के इसके साथ विवाह करेगा, अपराधी हो जाएगा।

‘‘इस पर यह बहुत परेशान है और वालिद साहब से बगावत करने की सोच रही है।’’

‘‘देखो नगीना! अभी तुम दो साल तक अपनी मर्जी से शादी नहीं कर सकतीं और अगर तुम यह बात अब्बाजान से कहोगी तो वह तुम्हें यहाँ रखने के लिए भी तैयार नहीं होंगे।

‘‘इसलिए मेरा कहा मानो। शादी की बात मत करो और यहाँ इसलिए रहो कि तुमने अपनी भाभी से इल्म हासिल करना है। तब तुम्हें यहाँ रहने का मौका मिल सकेगा। फिर तुम कोशिश करना कि तुम्हारे बालिग होने तक उमाशंकर तुम्हारा इन्तजार करे। अगर तुम इसमें कामयाब हो गईं तो फिर शादी दो साल बाद हो सकेगी।’’

नगीना मुख देखती रह गई। इस पर मुहम्मद यासीन ने कहा, ‘‘चलो, अब्बाजान तुम्हें बुला रहे हैं। इसकी ही बाबत तुमसे बात करना चाहते हैं।’’

नगीना उठी और भाई के साथ बाहर ड्राइंग-रूम में आ गई। उसके आने पर अब्दुल हमीद ने लड़की को कहा, ‘‘इधर आओ। यहाँ बैठो।’’

वह बैठी तो अब्दुल हमीद ने पूछा, ‘‘यासीन मियां कह रहे हैं कि तुम यहाँ दिल्ली में रहना चाहती हो?’’

‘‘हाँ, अब्बाजान!’’

‘‘मैं पूछ रहा हूँ किसलिए रहना चाहती हो?’’

‘‘भाभीजान से कुछ सीखने का इरादा है। सुना है कि उसने दो मजमूनों में एम.ए. पास किया हुआ है। मैं एक मजमून उनसे पढ़ूँगी।’’

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