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उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611
आईएसबीएन :9781613011102

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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


रामकृष्ण के दोनों ही विचार ठीक थे। करीमखाँ ने जब अकबर के सामने सराय की तलाशी की घटना का वर्णन की तो बताया, ‘‘हुज़ूर! वह लड़की सरायवाले की नहीं थी। उसको तो सराय में आगरा से भागी जाती हुई एक हामला औरत ने जन्म दिया था। वह औरत सुंदरी के लिए भूषण और धन छोड़ गई थी। भूषणों में एक हार पर लगे एक नीलम के पीछे से यह कागज का टुकड़ा निकला है। यह हिंदुआनी जबान में लिखा है।’’

अकबर ने वह टुकड़ा ले लिया।

पंडिर विभूतिचरण मथुरा के एक गाँव के रहनेवाले थे। वह ज्योतिष के विद्वान् थे और उनकी ख्याति अकबर के पास पहुँची तो अकबर ने उन्हें बुला भेजा।

कथा-काल से तीन वर्ष पूर्व वह अकबर से मिला था और पहली ही भेंट में पंडित ने अकबर के मन पर एक स्थाई प्रभाव उत्पन्न किया था।

पंडित ने शहंशाह के जन्मकाल और स्थान को जानकर शहंशाह की जन्मकुंडली बनाई थी और तब ही यह भविष्यवाणी की थी कि उसकी शादी एक हिंदू राजा की लड़की से होगी जो उसके राज्य का उत्तराधिकारी उसे देगी।

उस समय जयपुर वालों से किसी प्रकार के संबंध का विचार तक भी नहीं था। इस पर भी यह अकबर के मन की बात थी कि हिंदू प्रजा में मिल-जुलकर राज्य करे।

पंडित विभूतिचरण ने अकबर को बताया था कि यह उसके भाग्य में लिखा है।

‘‘तो क्या इसके खिलाफ अमल नहीं कर सकता?’’ अकबर ने पूछा था।

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