| उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
फकीरचन्द इस परिचय से करोड़ीमल और वास्तव में करोड़पति को विस्मय में देखने लगा। करोड़ीमल ने उसके विस्मय के कारण का अनुमान लगाते हुए कहा, ‘‘तुमको विश्वास नहीं आता न?’’
‘‘जी नहीं ! आप थर्ड क्लास में यात्रा कर रहे हैं और फिर भी आपका हमारे प्रति व्यवहार देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है कि...।’’ फकीरचन्द कहता-कहता रुक गया है। 
इस पर करोड़ीमल हँस पडा और फकीरचन्द का वाक्य पूर्ण करते हुए बोला, ‘‘कोई कँगला हूँ। ठीक है न?’’
‘‘मैं तो आपको ऐसा नहीं कह सकता। मैं इतना जानता हूँ कि बड़े आदमी उदार हुआ करते हैं।’’
‘‘ठीक है, ठीक है। तुम्हारे स्कूल मास्टर ने ऐसा पढ़ाया है न? परन्तु उसने एक बात नहीं पढ़ाई। अधिकारी के साथ दिखाई उदारता ही फल लाती है। अनधिकारी के साथ ऐसा व्यवहार तो पाप हो जाता है। जब मुझको पता चला कि तुम लोग अधिकारी हो, तो मैं चुप कर गया और मैंने तुमको भीतर आने और बैठने दिया।’’
अब हँसने की बारी फकीरचन्द की थी। इस पर उसने कुछ कहा नहीं। करोड़ीमल ने कहा, ‘‘देखो, क्या नाम है तुम्हारा?’’
‘‘फकीरचन्द।’’
‘‘देखो, फकीरचन्द ! विश्वास करो कि मैं करोड़पति हूँ। इसपर भी मैं अपना धन व्यर्थ नहीं गँवाता। यदि मैं थर्ड क्लास में सवार होकर बम्बई पहुँच सकता हूँ, तो सैकण्ड और फर्स्ट क्लास में चढ़ना व्यर्थ समझता हूँ। यदि मैं सारे डिब्बे में बैठ सकता हूँ, तो, मैं किसी दूसरे को डिब्बे में आने नहीं देता। जब पैसा कमाने का कोई उपाय सूझता हो, तो मैं उस उपाय को निस्संकोच प्रयोग में लाता हूँ। जब मैं देखता हूँ कि पैसा खर्च करने के लिए विवश हूँ तो फिर खर्च भी कर देता हूँ।’’
फकीरचन्द इस स्वनिर्मित धनी की जीवन-मीमांसा का दर्शन कर विस्मय कर रहा था। उसकी शिक्षा इससे भिन्न थी। 
			
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