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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
डॉक्टर
नीचे उतर आया। लक्ष्मी और कस्तूरी वहीं ठहर गये। चरण-दास डॉक्टर का बैग
पकड़कर साथ-साथ चलने लगा। लक्ष्मी ने कह दिया, ‘‘चरण, हमारी मोटर बाज़ार
में खड़ी है। ड्राइवर को कहना, डॉक्टर साहब को कोठी पर छोड़ पुनः यहाँ आ
जाय। हमें जल्दी ही लौटना है।’’
चरणदास डॉक्टर के साथ-साथ
गली में
से जा रहा था। डॉक्टर ने पूछ लिया, ‘‘आप तो पढ़े-लिखे व्यक्ति मालूम होते
हैं। फिर इन ‘क्वैकर्स’ के हाथ किस प्रकार पड़ गये?’’
चरणदास को हँसी सूझी।
उसने कहा, ‘‘डॉक्टर साहब! पढ़े-लिखे तो नई दिल्ली में रहते हैं। शहर में
प्रायः अनपढ़ व्यक्ति ही रहते हैं।’’
‘‘ओह, ठीक है। आपका मतलब
है ‘कल्चर्ड’ व्यक्ति?’’
‘‘हाँ, आज के युग में
धनवान ही शिक्षित और सभ्य माने जाते हैं। निर्धन तो अशिक्षित तथा असभ्य
माने जाते हैं।’’
‘‘नो-नो, आई डोण्ट मीन
दैट।’ आप क्या करते हैं?’’
‘‘मैं एक प्राइमरी स्कूल
में प्रधानाध्यापक हूँ।’’
‘‘ग्रैजुएट हैं?’’
‘‘जी नहीं, मैं मैट्रिक
और जे० ए० वी० हूँ।’’
‘‘तभी। खैर छोड़ो। यह
होमियोपैथी साइंटिफिक नहीं, इससे रोगी की भारी हानि हो सकती है।’’
‘‘अच्छी बात है। अब आपकी
ही औषधि दी जायगी।’’
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