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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


: ४ :

गजराज कम्पनी के कार्यालय में गया तो वहाँ मनसाराम को बैठे देख प्रश्न-भरी दृष्टि में उसकी ओर देखने लगा। मनसाराम ने मुस्कुराते हुए पूछ लिया, ‘‘गजराजजी! आज कम्पनी की जनरल मीटिंग में नहीं आये?’’

‘‘मीटिंग! कैसी मीटिंग?’’

‘‘कल हमारी वार्षिक मीटिंग थी न? आपके ही हस्ताक्षरों से तो मीटिंग बुलाई गई थी?’’

गजराज को धुंधली-सी स्मृति थी कि कुछ दिन हुए उसने एक मीटिंग का एजेण्डा निकाला था। उसने घंटी बजाई। चपरासी आया तो उसने कहा कि वह सेक्रेटरी साहब को बुलाए।

चपरासी जाकर कस्तूरीलाल को बुला लाया। गजराज ने कहा, ‘‘मीटिंग कौन सी तारीख की थी?’’

‘‘तीस मार्च। आप कल आये नहीं?’’

‘‘एजेण्डा दिखाओ।’’

अपने हाथ की फाइल से एजेण्डा निकालकर कस्तूरीलाल ने गजराज के सम्मुख रख दिया। एजेण्डा में कम्पनी के पिछले वर्ष के आय-व्यय का ब्यौरा, आगामी वर्ष का आनुमानिक आय-व्यय, हिस्सों का परिवर्तन और अन्त में डायरेक्टरों का निर्वाचन था।

गजराज के पाँव तले से मिट्टी निकल गई। उसका मुख विवर्ण हो गया। उसने कस्तूरी से पूछा, ‘‘तो क्या कल निर्वाचन हो गया?’’

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