| उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
    लक्ष्मी हँस पड़ी। उसने
      कहा,
      ‘‘भगवान् करे कि आपके कहे पर फूल चढ़ें। परन्तु यह सब-कुछ कब होगा? यमुना
      तो अभी छः वर्ष की ही है। समय ऐसा आ गया है कि लड़कियों का विवाह अब बड़ी
      आयु होने पर किया जाता है। सोलह-सत्रह वर्ष की आयु से पूर्व तो विवाह होता
      ही नहीं। हमारे समय में तो ग्यारह-बारह वर्ष से पूर्व ही हो जाया करता
      था।’’
    
    ‘‘तो ऐसा करो, तब तक के
      लिए अपने भाई को यहाँ लाकर ही रख लो।
      पिताजी ने मरते समय कहा भी था कि लाला सोमनाथजी ने हम पर बहुत एहसान किया
      है, जो तुम-जैसी देवी हमको दी है। उस एहसान का बदला कुछ उतर ही जायेगा।’’
    
    ‘‘मेरी हँसी कर रहे हैं
      क्या?’’ देवता को देवी मिली थी अथवा देवी को देवता?’’
    
    गजराज हँस पड़ा। लक्ष्मी
      ने अभी भी गम्भीर भाव से कहा, ‘‘यदि मेरे वहाँ जाने से आपको कोई कष्ट होता
      हो तो मैं नहीं जाया करूँगी।’’
    
    ‘‘राम-राम!
      क्या कह रही हो देवीजी! मुझे भला क्या कष्ट होगा इसमें? मैं तो कह रहा था
      कि चरणदास यदि यहाँ आकर रहने लगे तो बच्चों को तो पढ़ा ही दिया करेगा।’’
    
    ‘‘पढ़ा तो वह वैसे भी
      दिया करेगा। कहो तो कल से ही आ जाय?’’
    
    ‘‘नहीं, यदि वह इस कोठी
      में आकर रहना पसन्द करे तभी इतना काम उससे लिया करूँगा।’’
    
    इसके
      बाद लक्ष्मी यत्न करती रही। सफलता केवल तब मिली, जब चरणदास ने प्राइवेट
      इण्टरमीडिएट की परीक्षा की तैयारी आरम्भ कर दी थी। वह बी० ए० कर बी० टी०
      करना चाहता था, जिससे अपनी आय में कुछ उन्नति कर सके। 
    			
		  			
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