| उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
    ‘‘वह अभी कह रही थी कि
      गजराज ने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा, ‘‘और वह मारती भी तो हैं।’’
    
    ‘‘नहीं, वह कभी नहीं
      मारतीं। वह तो प्यार करती हैं।’’
    
    ‘‘देखो
      यमुना! सुभद्रा कैसे बातें करती है। प्रत्येक बात का कारण बताती है! तुमने
      कह दिया, ‘‘मुझे मालूम नहीं।’ भला यह भी कोई कारण है!’’
    
    गजराज ने
      सुभद्रा के बोलने के ढंग से ही यह विचार किया कि बच्चों के लिए, विशेषतया
      यमुना के लिए, ट्यूटर की आवश्यकता है। इस विचार पर कई दिन तक मनन करने से
      वह इस परिणाम पर पहुँचा कि चरणदास की कोठी में रखकर उसे बच्चों का ट्यूटर
      नियुक्त कर दिया जाय। अपनी इस योजना को वह चरणदास के लिए यत्न करने लगा। 
    
    चरणदास
      कस्तूरी और यमुना को पढ़ाने लगा तो उसको पता चला कि स्कूल की पढ़ाई तो ठीक
      है, परन्तु स्कूल में उनका मानसिक विकास नहीं हो पा रहा है। अतः उसने इस
      ओर विशेष ध्यान देना आरम्भ कर दिया।
    
    ‘‘नियत समय पर वह उसको
      अपने समीप बैठाकर पूछता था, ‘‘कस्तूरी! स्कूल से क्या काम मिला है?’’
    
    ‘‘जो मिला था वह तो मैंने
      कर लिया है।’’
    
    ‘‘दिखाओ तो मुझे।’’
    
    ‘‘अभी दिखाता हूँ
      मामाजी!’’
    			
		  			
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