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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


: ४ :

यमुना और सुभद्रा सहेली थीं और उनका परस्पर बहुत प्यार था। इसी कारण जब यमुना को लन्दन के एक कॉलेज में स्थान मिला तो उसने अपना विलायत जाना एक वर्ष के लिए स्थगित कर दिया। यह इसलिये कि अगले वर्ष की परीक्षा पास कर सुभद्रा का विलायत जाने का विचार था और इसके लिए यत्न भी हो रहा था।

यद्यपि चरणदास इसमे कोई लाभ नहीं समझता था, परन्तु धन फालतू होने के कारण उसका इससे अच्छा उपयोग समझ में नहीं आ रहा था। मोहिनी ने कहा भी, ‘‘लड़की जवान हो रही है। उसका विवाह होना चाहिए। पढ़ाई से क्या बनेगा?’’

चरणदास बोला, ‘‘मैं तो यही चाहता हूँ, परन्तु लड़का तो अभी मिल नहीं रहा है। जब तक विवाह का प्रबन्ध नहीं हो जाता तब तक यदि वह पढ़ती रहे तो क्या हानि है? साथ ही पहले तो सुमित्रा का विवाह होगा। इसलिए स्वाभाविक ही इसके विवाह में कुछ समय लग जायेगा।’’

‘‘पढ़ाई क्या विलायत के अतिरिक्त अन्य कहीं नहीं हो सकती?’’

‘‘क्या फर्क पड़ता है इससे? रुपया है। सौ रुपये मासिक व्यय न हुआ तो तीन सौ हो गया। इतने से कुछ कमी तो आएगी नहीं।’’

‘‘मोहिनी निरुत्तर हो गई। वह अनुभव करती थी कि घर में सब-कुछ उसके संस्कारों के विपरीत हो रहा है। फिर वह विचार करती थी कि उसके संस्कार तो चपरासी के घर के संस्कार हैं। अब वह एक रईस के घर की मालकिन है। इस विचार से वह अपने मन में उठने वाली शंकाओं को दबा देती थी।

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