उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘अच्छी बात है, सुन
लो। तुम्हारा दोस्त, जिसको तुम मेरे अलावा अपने बिस्तर का शरीक बनाये हुए
हो, चरणदास है। यह लड़का मुझसे नहीं बल्कि चरणदास से मिलता-जुलता है। वह
सब-कुछ मेरे सामने इकबाल कर चुका है। इसलिए मैंने उसको एक महीने के लिए
कहीं बाहर भेज दिया है। मेरा ख्याल था कि इस एक मास में तुम यह फैसला कर
लोगी कि हम दोनों में से तुम किसके पास रहना चाहती हो।’’
‘‘आपको क्या ऐतराज है यदि
मैं ऐसे ही रहूँ, जैसे अब रही हूँ?’’
‘‘नहीं, मैं यह मंजूर
नहीं कर सकता।’’
‘‘अगर मैं चरणदास को पसंद
करूँ तो आप क्या करेंगे? यह तो कुदरती बात है कि मैं आपसे कम उमर के आदमी
को पसन्द करूँगी।’’
‘‘तो करो, मैं मना नहीं
करता, लेकिन मैं इसको पसन्द नहीं करता। मैं आज से तुमसे अपना ताल्लुक
छोड़ता हूँ।’’
शरीफन
चुपचाप आँखें नीची किये बैठी रही। गजराज नीचे उतर आया। देखने में तो वह
नाराज मालूम नहीं होता था। वास्तव में वह दिल में जल-भुन गया था। उसको
ज्ञान नहीं था कि चरणदास ने इस औरत को कितना खिलाया-पिलाया था। वह केवल
अपने विषय में ही जानता था कि उसने इस औरत को बहुत-कुछ दिया है। उसको दुःख
इस बात का था कि जिस आदमी को उसने एक प्राइमरी स्कूल की मास्टरी से उठाकर
एक सम्पन्न सेक्रेटरी बना दिया है, वही अब उसका प्रतिस्पर्द्धी बन गया है।
केवल इतना ही नहीं, प्रत्युत उसने इस औरत के सम्मुख उसको पराजित कर दिया
है।
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