उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
मोहिनी के हृदय को इस
समाचार से बहुत धक्का लगा। वह अवाक् कितनी ही देर तक बैठी विचार करती रही।
फिर एकाएक उसके मन में एक अज्ञात भय समा गया। वह विचार कर रही थी कि यदि
नौकरी छूट गई है तो घर क्यों नहीं आये? कहीं आत्महत्या तो नहीं कर बैठे?
इस विचार के आते ही वह उठी और भागकर बरामदे में रखे टेलीफोन का रिसीवर उठा
गजराज के घर पर फोन करने लगी।
उधर से लक्ष्मी ने फोन
उठाया। मोहिनी ने घबराई हुई आवाज़ में पूछा, ‘‘जीजाजी कहाँ हैं?’’
‘‘वे आज क्लब गये हैं।’’
‘‘आपको पता है कि आपके
भाई को आज कम्पनी ने डिसमिस कर दिया है?’’
‘‘क्या कह रही हो भाभी?’’
‘‘कस्तूरी कहाँ है?’’
‘‘वह प्रातः काल अपने
पिताजी के साथ गया था, परन्तु अभी तक लौटकर नहीं आया है।’’
‘‘सुमित्रा
कॉलेज से बारहखम्भा तक बस में आती थी और वहाँ से अपने पिता के साथ आया
करती थी। आज जब कार्यालय में गई तो अपने पिताजी के स्थान पर उसने
कस्तूरीलाल को बैठे देखा। उसने ही सुमित्रा को बताया कि उसके पिताजी को
कार्यालय से निकाल दिया गया है।
‘‘वे अभी तक घर नहीं आए
हैं। मेरा दिल बैठा जा रहा है। मैं नहीं जानती कि क्या होने वाला है?’’
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