लोगों की राय

उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘विचार करने की आवश्यकता नहीं। अब वह उतना ही निर्धन नहीं है, जितना तब था, जब सीताराम बाज़ार में रहता था और स्कूल-मास्टरी करता था।’’

‘‘आप उसको सन्देश भेज दीजिए कि घर पर उसकी प्रतीक्षा हो रही है।’’

गजराज ने क्लब से अपने ड्राइवर को एक पत्र देते हुए शरीफन के घर का पता बताकर वह पत्र चरणदास को दे आने के लिए कहा। उसको बता दिया गया कि वह मोटर कहीं दूर ही खड़ी करे। यह भी पता न चलने दे कि कौन पत्र दे गया है।

गजराज का विचार था कि नौकरी छूटने का गम दूर करने के लिए चरणदास अपनी प्रेमिका के पास गया होगा। उसका अनुमान ठीक ही था। ड्राइवर ने एक औरत को, जो एक छोटा-सा बच्चा लिये नीचे खड़ी थी, वह पत्र देकर कह दिया, ‘‘इसे अपने मालिक को दे दो।’’

वह बच्चा पालने वाली दायी थी। उसने पत्र लिया और उस पर लिखा पता पढ़ा। पता अंग्रेज़ी में टाइप किया हुआ था। लिखा था–‘मिस्टर चरणदास कपूर।’

दायी जानती थी कि यह पत्र बाबू के लिए है। वह अभी पत्र को ऊपर नीचे देख रही थी कि ड्राइवर वहाँ से चला गया। दायी लिफाफा लेकर मकान पर चढ़ गई और चरणदास को पत्र देकर उसका मुख देखने लगी।

चरणदास भी आश्चर्य कर रहा था कि यह पत्र वहाँ पर कैसे आया? उसने लिफाफा खोलकर पढ़ा। भीतर एक कागज़ पर केवल यह टाइप किया हुआ था, ‘‘तुम्हारी नौकरी छूट जाने का समाचार तुम्हारे घर वालों को मिल गया है। तुम्हारे अभी तक घर न पहुँचने से वे आशंका कर रहे हैं कि कहीं तुमने आत्महत्या न कर ली हो। इस कारण मेरी राय है कि तुम शीघ्र ही घर पहुँच जाओ।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book