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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


मधु और मधुबाला ने गजराज के मस्तिष्क पर अधिकार किया तो वह घर से तटस्थ रहने लगा। पहले तो मद्य की मादकता में चूर रात के एक-दो बजे घर पर पहुँचता और मोटर ड्राइवर उसको आश्रय देकर गाड़ी से उतार उसके सोने के कमरे में छोड़ जाता। वहाँ पहुँच बिना कपड़े उतारे ही वह सो जाता।

लक्ष्मी उस समय सोई होती थी। उसने अपने पति की बिगड़ी अवस्था को जाना-समझा और उसे अपने मन से निकाल दिया। वह स्वयं अपने भावी जन्म को बनाने में लीन हो गई। प्रायः चार बजे उठती, स्नानादि से निवृत्त हो पूजा पर बैठ जाती। राम-नाम का जाप ही वह जानती थी और उसी में दिन के आठ बजे तक लीन रहती। इसके बाद दूध पी वह पुनः विश्राम करने के लिए अपने सोने के कमरे में चली जाती।

गजराज की नींद दस-ग्यारह बजे तक खुलती। वह नहा-धो, नाश्ता कर तथा एक पैग मुँह में डाल कार्यालय को चला जाता। उसके जाने के बाद लक्ष्मी अपने सोने के कमरे से निकलती और कभी रामायण, कभी भागवत का पाठ करती। इसमें वह बहुत रस पाती थी। मध्याह्न का खाना खाने गजराज घर पर आता, उस समय पति-पत्नी का साक्षात्कार हो जाता। प्रायः चुपचाप ही भोजन होता और लक्ष्मी घर के काम की देख-भाल में लग जाती।

पतन की अन्तिम सीढ़ी आ गई। लक्ष्मी ने मुंशी से, जो गजराज का हिसाब-किताब रखता था, घर के लिए रुपये मँगवाये तो मुंशी स्वयं उपस्थित हो कहने लगा, ‘‘माताजी, आज बैंक में रुपया नहीं है। आप कुछ दिन ठहर जाएँ तो उचित होगा।’’

‘‘क्यो, कहाँ गया है रुपया?’’

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