उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘जी! लाला मनसाराम नरूला
मैनेजिंग डायरेक्टर निर्वाचित हुए हैं।’’
‘‘मेरा नाम भी किसी ने
प्रस्तावित किया था क्या?’’
‘‘जी।’’
‘‘किसने?’’
‘‘मामाजी ने।’’
‘‘क्या?’’ विस्मय में
गजराज ने पूछा।
‘‘लाला चरणदासजी ने।
परन्तु उनका समर्थन किसी ने नहीं किया।’’
‘‘तुमने भी नहीं? तुम भी
तो हिस्सेदार हो?’’
‘‘जी,
मैं तो लाला मनसारामजी के नाम का प्रस्तावक था, आपका समर्थन किस प्रकार कर
सकता था? यदि करता भी तो आपके लिए वोट देने वाला भी तो कोई नहीं था।’’
‘‘ओह!’’
गजराज कुछ क्षण विचारमग्न
बैठा रहा। फिर बोला, ‘‘तो अब?’’
‘‘अब मैनेजिंग डायरेक्टर
साहब आपसे चार्ज लेने आए हैं।’’
‘‘क्या मैं जान सकता हूँ
कि किस-किसने लाला मनसाराम के नाम का समर्थन किया है?’’
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