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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘गन्दे कहाँ हैं, ये तो धुले हुए साफ कपड़े पहनकर आई हैं।’’

‘‘मम्मी, तुम समझती क्यों नहीं? यह सलवार-कुरता हमारे स्कूल में कोई नहीं पहनता।’’

‘‘पर यह तो घर है, स्कूल नहीं। मैं भी कभी-कभी सलवार-कुरता पहनती हूँ।’’

‘‘तुम तो मेरी बहिन नहीं हो न! मेरी बहिनें ऐसे कपड़े नहीं पहन सकतीं।’’

सुभद्रा यमुना को अपनी माँ से झगड़ा करते देख वहाँ से खिसक गई। कस्तूरी भी चला गया। लक्ष्मी यमुना को समझा रही थी, ‘ये तुम्हारे मामा की लड़कियाँ हैं। इनके स्कूल में ऐसे ही कपड़े पहने जाते हैं। इस ढंग के कपड़े पहनने पर भी ये तुम्हारी बहिनें ही हैं।’’

‘‘मम्मी, यह तो गरीबों का पहनावा है। देखा नहीं, कितने मोटे कपड़े थे?’’

‘‘वे तो खद्दर के थे।’’

‘‘वह क्या होता है?’’

‘‘जो महात्मा गाँधी पहनते हैं।’’

‘‘ही इज़ एन ऐजीटेटर।’’

लक्ष्मी समझी नहीं कि यमुना ने क्या कहा है। यमुना उसको समझा भी नहीं सकती थी। यह तो जो उसने अपनी अध्यापिका से सुना था, वही दोहरा दिया था। लक्ष्मी ने मुस्कराते हुए पूछा, ‘‘क्या कहा यमुना?’’

यमुना कुछ न बता सकने पर कमरे से बाहर निकल ड्राइंग-रूम में चली गयी। माँ ने समझा कि वह गाँधी की प्रशंसा में कुछ कह गई है। इससे चुप हो वह पुनः मोहिनी के पास चली आई।

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