उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
वह
कहता, ‘‘देखो कस्तूरी! इस समय तुम मुझको ‘मास्टरजी’ कहा करो। मैं तुमको
पढ़ाता हूँ। पढ़ाने वाला मामा नहीं होता, मास्टर होता है।’’
चरणदास
कस्तूरी की घर के काम की कापियाँ देखता। बीच-बीच में कुछ पूछकर विश्वास कर
लेता था कि उसने पाठ को भलीभाँति समझा अथवा नहीं। फिर बातचीत आरम्भ हो
जाती।
एक दिन उसने पूछा,
‘‘तुम्हारे अंग्रेज़ी पढ़ाने वाले मास्टरजी का नाम क्या है!’’
‘‘रिचर्डसन।’’
‘‘उसका नाम हमारे-जैसा
नहीं है?’’
‘‘वह अंग्रेज़ है।’’
‘‘अंग्रेज़ कहाँ के रहने
वाले होते हैं?’’
‘‘इंग्लैण्ड के।’’
‘‘इंग्लैण्ड किधर है?’’
‘‘यहाँ से उत्तर-पश्चिम
की ओर सात हज़ार मील की दूरी पर है।’’
‘‘इतनी दूर से आकर
तुम्हारा यह मास्टर यहाँ क्या कर रहा है?’’
‘‘नई दिल्ली में तो और भी
कई अंग्रेज़ रहते हैं।’’
‘‘ये यहाँ क्या करते
हैं?’’
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